बलराम भाई जी के घर पर धरना
कुछ दिन पहले भाइयों से मिलने दिल्ली जाना हुआ। बलराम भाई जी से भी मिलने गई नोएडा उनकी नए आवास स्थल पर। वैसे जब वे अपने नए घर में गए तो मुझे एक साल तक सूचना नहीं दी लेकिन मैंने भी पता लगा लिया और चिलचिलाती धूप में उनके दरवाजे पर दस्तक दे ही दी। स्नेहभरे आत्मीयता के दो घंटे कैसे गुजर गए पता ही ना लगा। कुछ घर बाहर की बातें हुई कुछ समय लघु कथा पर चर्चा हुई। बातों से तो पेट नहीं भरा लेकिन भाभी जी के हाथ की बनाई गरम गरम चाय और पकोड़े खाकर बड़ी तृप्ति हुई। दुबई की खास मिठाई खाकर तो मजा आ गया ।उससे पहले वह मिठाई मैंने कभी नहीं खाई थी। फिर फलों के खाने का सिलसिला चलता रहा जब तक कि उनसे विदा न ले ली। बस इसी तरह हम अपनों से मिलते रहें ।
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