बैकुंठ -धाम/सुधा भार्गव
पति की मृत्यु के बाद उठावनी के दिन श्यामा ने सलाह दी --तेरहवीं साधारण तरीके से की जाये और शोक समाप्ति भी जल्दी हो ताकि बच्चे अपने अपने काम पर जा सकें । उनको शहर से बाहर जाना है । यादें और इंसानी मोहब्बत तो दिल से है उपरी दिखावे से क्या लाभ !
-साधारण क्यों !खूब जोर -शोर से कीजिए।किस बात की कमी है-- और फिर ---चंदन बाबू अपने पीछे चंदन सी फुलवारी छोड़ गये हैं -एक बुजुर्ग महाशय भड़क उठे।
किसी का ध्यान उस झाड़ी की ओर न गया जो चंद दिनों में ही बदरंग हो गई थी ।
तेरहवीं के बाद श्यामा अपने भाई से मिलने दिल्ली गई। वहाँ काफी लोग मिलने आये या उसकी उजड़ी मांग का जायजा लेने आये --पता नहीं----। पर वहाँ भी कुछ के चेहरे नाराजगी से पुते हुए थे।
- पता ही नहीं चला -तेरहवीं कब हो गई । हम तो तुम्हारे पास आने को बैठे थे।
-समय कम था --पत्र तो लिखे नहीं जा सके। लेकिन नाते -रिश्तेदारों को ई .मेल करके और फ़ोन से खबर कर दी ्थी। हो सकता है किसी -किसी को सूचना न मिल पाई हो ।
-अजी आपके बेटे तो बहुत समझदार हैं ।यह गलती तो नहीं होनी चाहिए ----थी।
-इस बार माफ कीजिये। अगली बार आपको शिकायत का मौका नहीं दिया जायेगा । मैं बैकुंठ -धाम जल्दी ही जाऊंगी।
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