आदर्शों की गठरी /सुधा भार्गव
वे दोनों छोटे से होटल में ठहरे थे ।केदारनाथ के मंदिर में प्रभु दर्शन करने आए थे ।उस समय पानी बरसना शुरू हो गया था । अंधेरा होते–होते बरसात ने विकराल रूप धारण कर लिया। अचानक उन्हें कमरे की दीवारें घूमती नजर आईं । सोचा थकान से माथा घूम रहा है । पर बाहर का शोर सुन बाहर निकले । भाग दौड़ मची थी –चिल्ला रहे थे मैदान की तरफ भागो । वे जिस अवस्था में थे जान बचाने को भागे ।सड़क पर आते –आते वह होटल धराशाही हो गया क्योंकि भूस्खलन शुरू हो गया था।
पथरीले रास्ते पर भागते –भागते जहां सांस लेने की सोचते ,देखते- चट्टानें सरक रही है। फिर भागने लगते -----जिधर रास्ता नजर आता उसी
ओर मुड़ जाते । वे जब तक बाजार में पहुंचे,आधे से ज्यादा बरबादी की चपेट में आकर
नीचे गिर गया था । कुछ घायल पड़े थे ,कुछ मलवे में दब गए थे, कुछ अंतिम सांसें ले चुके थे । उन्हें लकड़ी की बनी अधटूटी मिठाई की दुकान
नजर आई। वे दो दिन तक उसी में भूखे प्यासे
।बरसते पानी में भीगते ,ठंड से काँपते बैठे रहे। ग्लेशियर के टूटने से जमीन जल मग्न होने लगी थी ।
समझ नहीं आता था जाएँ तो कहाँ जाएँ। आकाश
से पानी –धरती
पर तो पानी। मोबाइल ,पैसा सब होटल में छूट गया।
उस दिन दूर से एक पहाड़ी ,टोकरी में 3-4बोतले पानी की लाता नजर आया ।
-भैया हमको जरा पानी पिला दे ।
-पैसा निकालो –पूरे 50 रूपल्ली ।
-20की जगह 50-- कमीनेपन की हद है ।
-ए --–गाली न निकाल । लेना है तो ले वरना मैं चला।
-हमारे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं ।
-कौन कहता है तेरे पास कुछ नहीं –सेठ है सेठ । देख तो तेरी वह अंगूठी !उसे बेच डाल।
-कहाँ बेचने जाऊँ। इसके तो दाम भी न मिलेंगे । पूरे 30 हजार की है ।
-मुझसे पानी लेना है तो इसके बदले चार बोतलें लेले । पानी पी कर एक दिन तो जिंदा रह ही लेगा ।
-यहाँ कुछ खाने को मिल जाएगा ?
-है क्यों नहीं ---थोड़ी दूर पर कोने में मेरा चचा दाल चावल लिए बैठा है । चल –तेरे साथी की अंगूठी भी काम आ जाएगी ।
दोनों यात्रियों को अंगूठी देनी ही पड़ी । दूसरी अंगूठी के बदले किसी तरह दाल –चावल खाकर उन्हें लगा कुछ घंटों को तो शरीर की गाड़ी चलाने को उसमें पेट्रोल पड़ ही गया है। अब आगे क्या होगा ---भगवान भरोसे अपने को छोड़ दिया और
जान बचाते,पड़ाव बदलते शाम हो गई।
शाम के धुंधलके में उन्हें एक औरत की लाश दिखाई दी किसी अच्छे परिवार की लगती थी ।
-जरा चौकन्ना होकर रह। कोई आता दिखाई दे तो बोल देना ।
-क्यों क्या बात है?
-पूछ मत ।
दूसरे ने उस महिला की अंगुलियों से तेजी से अंगूठियाँ निकलीं ।कंगन खींचकर गले की माला खींच ली ।
-अरे –यह क्या कर रहा है ?
-वही जो हमारे साथ हुआ । मैं इसके गहने न लेता तो कोई और छीन –झपट
लेता । जानता हूँ यह अपराध बोध मुझे जीने न देगा पर हमेशा आदर्शों की गठरी धोना बहुत मुश्किल है ।
उस दिन दूर से एक पहाड़ी ,टोकरी में 3-4बोतले पानी की लाता नजर आया ।
-भैया हमको जरा पानी पिला दे ।
-पैसा निकालो –पूरे 50 रूपल्ली ।
-20की जगह 50-- कमीनेपन की हद है ।
-ए --–गाली न निकाल । लेना है तो ले वरना मैं चला।
-हमारे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं ।
-कौन कहता है तेरे पास कुछ नहीं –सेठ है सेठ । देख तो तेरी वह अंगूठी !उसे बेच डाल।
-कहाँ बेचने जाऊँ। इसके तो दाम भी न मिलेंगे । पूरे 30 हजार की है ।
-मुझसे पानी लेना है तो इसके बदले चार बोतलें लेले । पानी पी कर एक दिन तो जिंदा रह ही लेगा ।
-यहाँ कुछ खाने को मिल जाएगा ?
-है क्यों नहीं ---थोड़ी दूर पर कोने में मेरा चचा दाल चावल लिए बैठा है । चल –तेरे साथी की अंगूठी भी काम आ जाएगी ।
दोनों यात्रियों को अंगूठी देनी ही पड़ी । दूसरी अंगूठी के बदले किसी तरह दाल –चावल खाकर उन्हें लगा कुछ घंटों को तो शरीर की गाड़ी चलाने को उसमें पेट्रोल पड़ ही गया है। अब आगे क्या होगा ---भगवान भरोसे अपने को छोड़ दिया और
जान बचाते,पड़ाव बदलते शाम हो गई।
शाम के धुंधलके में उन्हें एक औरत की लाश दिखाई दी किसी अच्छे परिवार की लगती थी ।
-जरा चौकन्ना होकर रह। कोई आता दिखाई दे तो बोल देना ।
-क्यों क्या बात है?
-पूछ मत ।
दूसरे ने उस महिला की अंगुलियों से तेजी से अंगूठियाँ निकलीं ।कंगन खींचकर गले की माला खींच ली ।
-अरे –यह क्या कर रहा है ?
-वही जो हमारे साथ हुआ । मैं इसके गहने न लेता तो कोई और छीन –झपट
लेता । जानता हूँ यह अपराध बोध मुझे जीने न देगा पर हमेशा आदर्शों की गठरी धोना बहुत मुश्किल है ।
बैंगलोर