पुरस्कार /सुधा भार्गव
यह उन दिनों
की बात है जब मैं कलकत्ते में जय इंजीनियरिंग वर्क्स के अंतर्गत उषा फैक्ट्री में
इंजीनियर था । जितना ऊँचा
ओहदा उतनी भारी भरकम
जिम्मेदारियां !खैर --मैं चुस्ती से अपने कर्तव्य पथ पर अडिग था ।
अचानक उषा
फैक्ट्री में लौक आउट हो गया । छह माह बंद रही । हम सीनियर्स
को वेतन
तो मिलता रहा पर रोज जाना पड़ता था । आये दिन मजदूर अफसरों का घिराव कर लेते थे क्योंकि लौक आउट होने का कारण ,वे उन्हें ही समझते थे ।
छ ;माह के बाद नींद हराम हो गई। तरह -तरह की
अफवाहें जड़ ज़माने लगीं --बंद हो जायेगा वेतन मिलना ,छंटनी होगी कर्मचारियों की ,इस्तीफा देने को मजबूर किया जायेगा
--फैकट्री बंद हो जायेगी ।
दिन -रात
मैं सोचता -भगवान् नौकरी छूट गई तो क्या होगा --|तीन बच्चों सहित कहीं एक दिन भी गुजारा नहीं ।
एक अन्तरंग
मित्र जो देहली में रहते थे सलाह दी -एक माह की छुट्टी
लेकर तुम यहाँ आ जाओ । मशीने मैं खरीदूंगा तुम कार के पार्ट्स
बनाना ।
वहाँ जाकर मैंने कार के पार्ट्स की ड्राइंग की फिर उसके अनुसार पार्ट्स बनवाये । मैंने अपनी सफलता की सूचना मित्र को बड़े उत्साह से दी ।
वहाँ जाकर मैंने कार के पार्ट्स की ड्राइंग की फिर उसके अनुसार पार्ट्स बनवाये । मैंने अपनी सफलता की सूचना मित्र को बड़े उत्साह से दी ।
वे बोले- ---पार्ट्स तो बनवा लिए पर इनके विज्ञापन का कार्य भी आपको करना पड़ेगा । प्रारंभ में तो दरवाजे -दरवाजे
आपको ही जाना पड़ेगा । इनके
इस्तेमाल करने से होने वाले फायदे आपसे ज्यादा अच्छी तरह दुकानदारों को कौन समझा
सकेगा । उनकी मांग
पर निर्भर करेगा कितना माल बने । व्यापार में शुरू -शुरू में अकेले ही करना पड़ते है । मेरा मतलब माल बनाना ,बेचना ,पैसा उगाहना ।
व्यापार के
मामले में
मैं नौ सीखिया--बाप दादों में कोई व्यापारी नहीं --इतनी भागदौड़ वह भी अकेले। फैक्ट्री में तो अलग -अलग विभाग के अलग
दक्ष अफसर व कर्मचारी । यहाँ मैं
समस्त विभागों की खूबियां अपने में कैसे पैदा करूँ !
इस डावांडोल
परिस्थिति में मैंने निश्चय किया -पार्ट्स लुधियाना में छोटे छोटे कारखानों से
बनवाकर उन्हें बेचूँगा । लुधियाने
मैं मेरी जान पहचान भी थी ।
कार का एक
विशेष पार्ट ५रुपये का बना । मैंने उसकी कीमत १०रुपये रखी । इस बारे में दोस्त की सलाह लेनी भी आवश्यक समझी ।
बोले- -१०रुपये तो बहुत कम है ,१५ रखिये ।
-इतनी ज्यादा ! पार्ट बिकेगा नहीं ।
-सब बिकेगा |जो ज्यादा से ज्यादा झूठ बोलने वाला होता
है वही बड़ा व्यापारी बनता है । यहाँ ईमानदारी से काम नहीं चलता ।
कई
दिन गुजर गये पर उनकी बात पचा न पाया। मेरी स्थिति बड़ी अजीब थी !पैसा मेरा दोस्त लगा रहा था इस कारण उसकी बात माननी जरूरी थी मगर
मानूँ कैसे !मेरी आत्मा कुलबुलाने लगती ,बार -बार धिक्कारने आ जाती । आखिर हिम्मत करके
एक सुबह बोल ही दिया -
-यार ,मुझसे यहाँ काम धंधा नहीं होगा । कलकत्ते ही वापस जा रहा हूँ ।
-जानता था
--जानता था ,तुमसे कोई
काम नहीं होगा |ये इंजीनियर
सब बेकार होते हैं |
उस पल मैं हजार बार मरा होऊंगा ----।
कलकत्ते पहुँचते ही फैक्टरी गया । मेरी मेज पर
एक लिफाफा रखा हुआ था । काँपते
हाथों से उसे खोला । लग रहा था
सैकड़ों बिच्छू एक साथ उँगलियों में डंक मार रहे हों ।
मेरे नाम
पत्र था --
आपकी
ईमानदारी व मेहनत से प्रशासक वर्ग बहुत प्रभावित है । अत :खुश होकर आपको हैदराबाद भेज रहे हैं
ताकि फैन फैक्टरी में
भी विकास विभाग संभालकर नये -नये डिजायन के पंखों का निर्माण करें ।
प्रकाशित -हिन्दी प्रचारिणी सभा (कैनेडा )की अंतर्राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका हिन्दी चेतना लघुकथा विशेषांक अक्तूबर 2012 में.
हिन्दी चेतना की लिंक है - http://hindi-chetna.blogspot.in/