वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2020

टकराती रेत पर चर्चा

सुप्रसिद्ध साहित्यिकी संस्था  कोलकाता की ओर से  

वनिका पब्लिकेशन 
प्रकाशित -2018