परिवर्तन /सुधा भार्गव
रिटायर होते ही कर्नल साहब की सुख -सुविधा भरी जिन्दगी का अंत हो गया I नौकर -चाकर , खानसामा ,माली की भीड़ ऐसी छटी जैसे पतझड़ आते ही पत्ते तितर -बितर हो जाते हैं I
कर्नल साहब तो नई जिन्दगी के अनुरूप ढल गये मगर पत्नी निढाल हो गई I अतीत की ऐशो -आराम की जिन्दगी उसके लिए फूलों की सेज से कम नहीं थी I मेहनत की जिन्दगी उसे रास नहीं
आई और उसके दिमाग में समा गया --
मेरा पति मेरी देखभाल करने में सक्षम नहीं है और न ही विवाह के समय दिये वचनों को निबाहने में उसमें पहले जैसी तत्परता है I बौखलाई हुई सी दलदल में फंसती चली गई I
दुनिया वालों ने समझाया --परिवर्तन ही जीवन है ।
-हाँ ---ठीक कह रहे हो !माँ की आवाज गहरी थी I बेटे ने संतोष की साँस ली --चलो माँ समझ गई I
कुछ दिन बीते कि तलाक़ की आंधी चली I कर्नल साहब दूर छिटक कर जा पड़ेI
बच्चे रोये -गिड़गिड़ाये पर पत्थर से आँसू लुढ़ककर धरती में दफन हो गये I
इस अवसाद से बच्चे उभर भी नहीं पाए थे कि सुनने में आया --माँ ने अपने से १५ वर्ष बड़े एक
विदेशी से शादी कर ली है और तीसरी पत्नी बनकर अमेरिका जा रही है
-बेटा भागा -भागा आया I
-माँ ----मैं जो सुन रहा हूँ ,क्या वह सच है !
-हाँ --I
-लेकिन क्यों ?
-तुम नहीं समझोगे I
-क्या नहीं समझूँगा !
-यही कि इस उम्र में समय गुजरने के लिए साथी की बहुत आवश्यकता होती है ।
-तब पापा को तलाक़ देने की क्या जरूरत आन पड़ी थी I
-जरूरत थी--- क्योंकि -----परिवर्तन ही जीवन है I
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