लघुकथा डॉट कॉम पर भी मेरी लघुकथा छोटी बहू पढ़ सकते हैं ।
http://laghukatha.com/565-1.html
छोटी बहू
बेटी की
विदाइगी के समय आकाश की रुलाई फूट पड़ी और सुबकते हुए अपने समधी जी से बोला --भाई
साहब ,मेरी बेटी
को सब आता है पर खाना बनाना नहीं आता है ।
समधी बने
मनोहर लाल ने सहजता से कहा -कोई बात नहीं --आपने सब सिखा दिया ,खाना बनाना हम सिखा देंगे ।
सरस्वती के
पुजारी समधी जी आज फूले नहीं समा रहे थे घर में पढी -लिखी बहू जो आ
गई थी । जो भी मिलता कहते -भई ,पाँच -पाँच बेटियाँ विदा करने के बाद घर में एक सुघड़ बेटी आई है ।
शाम का समय
था कमरे मेँ बिछे कालीन पर एक चौकी रखी थी जिस पर चाय -नाश्ता सलीके से सजा था ।
नन्द -देवर अपनी भाभी को घेरे बैठे थे और इंतजार मेँ थे कि कब घर की बड़ी बहू
आए औए चाय पीना शुरू हो ।
कुछ मिनट
बीते कि जिठानी जी धम्म से कालीन पर आकर बैठ गईं और बोली -हे राम ,मैं तो बूरी तरह थक गई ,मुझसे कोई उठने को न कहना । और हाँ
छोटी बहू !मुझे एक कप चाय बना दो और तुम लोग भी शुरू करो ।
चाय केआर
घूँटभरने शुरू भी नहीं हुये थे कि छोटे बेटे को ढूंढते हुये ससुर जी उस कमरे मेँ आ
गए और बोले -रामकृष्ण तो यहाँ नहीं आया ?
बड़ी बहू
ने जल्दी से सिर पर पल्ला डाल घूँघट काढ़ लिया । छोटी बहू तुरंत खड़ी हो
गई और एक कुर्सी खींचते हुये बोली -बाबू जी आप जरा बैठिए मैं आपके लिए चाय
बनाती हूँ । भैया जी तो यहाँ नहीं आए ।
-न बहू ,मैं जरा जल्दी मेँ हूँ । चाय रहने दे ।
फिर बड़ी बहू
से बोले -इंदा ,मैं चाहता
हूँ अब से तुम भी पर्दा न करो ,नई बहू आजकल के जमाने की है । अब कोई पर्दा -सर्दा नहीं करता ।
-पहले जब मैं
पर्दा नहीं करना चाहती थी तब मुझसे पर्दा कराया गया ,अब आदत पड गई तो कहा जा रहा है कि पर्दा
न करो । अब तो मैं पर्दा करूंगी ।
नई नवेली
बहू आश्चर्य से जिठानी जी की तरफ देख रही थी --यह कैसा पर्दा !बड़ों के प्रति जरा
भी शिष्टता या आदर भावना नहीं !
मनोहर लाल
जी बड़ी बहू के रवैये से खिन्न हो उठे । उसने नई दुल्हन का भी लिहाज न किया । अपना
सा मुँह लेकर चले गए ।
उनके जाते ही एक वृद्धाने कमरे मेँ प्रवेश किया ।
--यहाँ कोई
आया था ?जासूस की
तरह पूछा ।
-हाँ !बाबू
जी आए थे । जिठानी जी ने कहा ।
-बात कर रहे
थे ?
-हाँ --बाबा
जी मम्मी से कुछ कह रहे थे और चाची जी से भी बातें की थीं । चाची जी से तो बात
करना सबको अच्छा लगता है । हमको भी अच्छा लगता है । वे हैं ही बहुत प्यारी
-प्यारी। ऐसा कहकर बच्चे ने छोटी बहू का हाथ चूम लिया ।
-छोटी बहू ,अभी तुम नई -नई हो । ससुर से बात करना
ठीक नहीं ।भौं टेढ़ी करते हुये वृद्धा बोली ।
- यदि
मुझसे कोई बात पूछे ,उसका भी
जबाव न दूँ ?-----यह तो बड़ी
अशिष्टता होगी !
दूसरे ही
क्षण मेहमानों से भरे घर मेँ हर जुबान पर एक ही बात थी ---
छोटी बहू
बड़ी तेज और जबानदराज है ।
* * * * *