वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

सोमवार, 12 मई 2014

बड़े ज़ोर –शोर से मनाए जाने वाले मातृ दिवस पर


मेरी दो लघुकथाएँ /सुधा भार्गव 


1-हैपी मदर्स डे 

बेटा तीन साल के बाद पढ़ाई करके विदेश से लौटने वाला था । उसने लौटने का दिन हैपी मदर्स डे चुना। वह इस दिन पहुँचकर माँ को चौंका देना चाहता था। आते ही माँ के पैर छुए और बोला माँ –हैपी मदर्स डे।
-हैपी मदरस डे !यह क्या होता है ।
-आज के दिन पूरी दुनिया में हैप्पी मदर्स डे मनाया जा रहा है । लोग अपनी माँ को याद करते हैं। उससे मिलने जाते हैं। उसका विशेष आदर कर तोफे देते हैं। देखो मैं मिलने आ गया और तेरे लिए कीमती तोफा भी लाया हूँ ।
-बस –बस—बहुत हो गया गौरव गान! क्या साल के 365 दिनों में केवल एक दिन को ही तेरी माँ रहती हूँ ?

2-याद न रहा

माँ –बेटे उस छोटे से घर में बड़े आराम से रहा करते पर बेटे की शादी के बाद वह घर छोटा पड़ने लगा । फिर एक बच्चा भी हो गया । पत्नी जिद करने लगी कि किराए पर एक दूसरा फ्लैट पास में ही ले लो ।
-क्या बात करती हो !दुनिया क्या कहेगी ! इसके अलावा मैं भी तो माँ से अलग नहीं रह सकता ।
-आप तो बच्चों की तरह बातें करते हो। मैं भी तो अपने माँ-बाप को छोडकर आपके पास रह रही हूँ । अच्छा ऐसा करो –अपना ट्रांसफर दूसरी जगह करा लो ।तब तो किसी को कुछ कहने का मौका ही नहीं मिलेगा और हमारी ज़िंदगी भी खूबसूरत मोड़ ले लेगी ।
-तुमने ठीक कहा। माँ को भी अपने साथ ले चलेंगे । वह भी नया शहर देख लेगी । पिताजी के मरने के बाद वह इस छोटे से घर से निकली भी नहीं हैं ।
-अभी तो हम खयाली पुलाब ही बना रहे हैं । ट्रांसफर लेकर पहले जम तो जाओ फिर माँ जी को बुलाने की सोचना ।

ट्रांसफर आर्डर हाथ में आते ही बेटा उछल पड़ा –माँ –माँ देखो मेरा ट्रांसफर ऑर्डर । मैं बड़े से शहर में  जा रहा हूँ ।तुझे  भी अपने साथ ले जाऊंगा । मिल मिलकर खूब घूमेंगे । वहाँ मेरी तरक्की होने का मौका भी हैं । 
-बेटा ,भगवान तुझे खूब तरक्की दे। पर मैं तेरे साथ न जा सकूँगी । तेरे पिता ने बड़े शौक से इस घर को बनवाया था । मुझे इससे मोह हो गया है । हाँ बीच –बीच में मिलने जरूर पहुँचूँगी। 

बेटा मन मारकर दूसरे शहर चल दिया पर अगले हफ्ते ही रविवार को माँ के पास आन धमका ।
माँ हैरान ! -बेटा यहाँ तू कैसे । तुझे तो नई जगह में बहुत काम होगा ।
-हाँ माँ बहुत काम है और काम के चक्कर में मैंने तुझे बहुत भूलाने की कोशिश की। सब याद रहा पर तुझे भूलना ही याद न रहा।