मेरी दो लघुकथाएँ /सुधा भार्गव
1-हैपी मदर्स डे
बेटा तीन साल के बाद पढ़ाई करके विदेश से लौटने वाला
था । उसने लौटने का दिन ‘हैपी मदर्स डे’ चुना। वह इस दिन पहुँचकर माँ को चौंका देना चाहता था। आते ही माँ के पैर
छुए और बोला माँ –हैपी मदर्स डे।
-हैपी मदरस डे !यह क्या होता है ।
-आज के दिन पूरी दुनिया में हैप्पी मदर्स डे मनाया
जा रहा है । लोग अपनी माँ को याद करते हैं। उससे मिलने जाते हैं। उसका विशेष आदर
कर तोफे देते हैं। देखो मैं मिलने आ गया और तेरे लिए कीमती तोफा भी लाया हूँ ।
-बस –बस—बहुत हो गया गौरव गान! क्या साल के 365 दिनों
में केवल एक दिन को ही तेरी माँ रहती हूँ ?
2-याद न रहा
माँ –बेटे उस छोटे से घर में बड़े आराम से रहा करते
पर बेटे की शादी के बाद वह घर छोटा पड़ने लगा । फिर एक बच्चा भी हो गया । पत्नी जिद
करने लगी कि किराए पर एक दूसरा फ्लैट पास में ही ले लो ।
-क्या बात करती हो !दुनिया क्या कहेगी ! इसके अलावा
मैं भी तो माँ से अलग नहीं रह सकता ।
-आप तो बच्चों की तरह बातें करते हो। मैं भी तो
अपने माँ-बाप को छोडकर आपके पास रह रही हूँ । अच्छा ऐसा करो –अपना ट्रांसफर दूसरी
जगह करा लो ।तब तो किसी को कुछ कहने का मौका ही नहीं मिलेगा और हमारी ज़िंदगी भी
खूबसूरत मोड़ ले लेगी ।
-तुमने ठीक कहा। माँ को भी अपने साथ ले चलेंगे ।
वह भी नया शहर देख लेगी । पिताजी के मरने के बाद वह इस छोटे से घर से निकली भी नहीं हैं ।
-अभी तो हम खयाली पुलाब ही बना रहे हैं । ट्रांसफर
लेकर पहले जम तो जाओ फिर माँ जी को बुलाने की सोचना ।
ट्रांसफर आर्डर हाथ में आते ही बेटा उछल पड़ा –माँ –माँ
देखो मेरा ट्रांसफर ऑर्डर । मैं बड़े से शहर में
जा रहा हूँ ।तुझे भी अपने साथ ले
जाऊंगा । मिल मिलकर खूब घूमेंगे । वहाँ मेरी तरक्की होने का मौका भी हैं ।
-बेटा ,भगवान तुझे खूब
तरक्की दे। पर मैं तेरे साथ न जा सकूँगी । तेरे पिता ने बड़े शौक से इस घर को बनवाया
था । मुझे इससे मोह हो गया है । हाँ बीच –बीच में मिलने जरूर पहुँचूँगी।
बेटा मन मारकर दूसरे शहर चल दिया पर अगले हफ्ते ही रविवार
को माँ के पास आन धमका ।
माँ हैरान ! -बेटा यहाँ तू कैसे । तुझे तो नई जगह
में बहुत काम होगा ।
-हाँ माँ बहुत काम है और काम के चक्कर में मैंने तुझे
बहुत भूलाने की कोशिश की। सब याद रहा पर तुझे भूलना ही याद न रहा।