मन पंछी /सुधा भार्गव
--हलो --शबनम ! कैसी हो ?तुम्हें तो बात करने की फुरसत नहीं ।
-ठीक हूं----। क्या बताऊँ शशी , बहू काम से बाहर गई है ।मैं प्यारी सी पोती के पास बैठी हूं ।
-अकेली -----आज कहीं बाहर घूमने नहीं गई।
-कहाँ जाऊँ ,कहीं चैन नहीं ! इसको खिलाने में ,बातें करने में बड़ा आनंद आता है ।
-ऐसी बात नहीं-- - - -घर में ही आनंद और तृप्ति हो तो बाहर ढूढ़ने की क्या जरूरत !
- पोती का मोह छोड़कर इंडिया आ सकोगी - - -कब आ रही हो ?
-चाहे जब चल दूँगी !
-कैसे आओगी ?तीन माह का टिकट जो लेकर गई हो- ---!
- उससे क्या होता है । जब तक इज्जत की सीढ़ियाँ चढ़ती रहूंगी तब तक यहाँ हूं ।जरा भी फिसलन लगी ---- ,चल दूँगी ।बिना टिकट के - - -|
मन से,विश्वास ,आसक्ति समाप्त हो जाय तो उसके उड़ने में देर नहीं लगती | मन की उड़ान के लिए टिकट की जरूरत नहीं ,शरीर यहाँ हुआ तो क्या हुआ।
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