दूध का कर्ज /सुधा भार्गव
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रामकली को पड़ोस में ही कीर्तन में जाना था। देर हो रही थी,इसलिए बच्चों के दूध के गिलास मेज पर रख दिए और बेटी को खास हिदायत दी –भाई को शीशे के गिलास वाला दूध पिला देना और तुम स्टील के गिलास वाला दूध पी लेना। भाई-बहन खेल में लग गए और फिर जिसके जो हाथ लगा दूध पी गया।
रामकली के आते ही लाड़ला बोला –माँ—माँ आज दूध की
मलाई कौन मार गया । न जाने दूध कैसा था?
-मैं तो तेरे लिए शीशे के गिलास में मलाईदार दूध रख
गई थी।कौन पी गया..... लगता है यह कमबख्त पी गई ।क्यों री तूने अपना दूध क्यों
नहीं पीया?
-माँ,मुझे भी तो मलाई
अच्छी लगती है।
-अरी तू मलाई खाकर क्या करेगी!चिकनाई खाकर मोटी और
हो जाएगी। मोटी लड़की से कौन शादी करेगा? बेटे का तो स्वस्थ और ताकतवर होना जरूरी है, बड़ा
होकर परिवार देखेगा अपने माँ-बाप की देखरेख करेगा,क्यों मेरे
छ्बीले ! बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फिराती है।
कुछ देर पहले ही दोनों बच्चों के पिताजी ऑफिस से लौटे
थे । एक पल तो अवाक से पत्नी की बातें सुनते रहे पर ज्यादा देर खामोश न रह सके-
-क्यों बेटी को कोस रही हो!जरूरी नहीं कि बेटा दूध का कर्ज चुका ही दे। हमारे साले
साहब को ही देख लो! बूढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेजकर ही दम लिया । अगर बेटे
माँ-बाप का सहारा बनते तो ये वृद्धाश्रम न बनते।