मंगलवार, 19 अप्रैल 2022
मंगलवार, 12 अप्रैल 2022
मेरी दो लघुकथाएं
अप्रैल अंक 2022 में प्रकाशित
सुधा भार्गव
1-वात्सल्य की हिलोरें
सोहर गाई जा रही थी । सोहर गीत पीड़ा और आनंद के खट्टे -मीठे अनुभवों से लबालब भरे हुये थे। जच्चा बनी वह बिस्तर पर लेटे प्रसव की पीड़ा को भुला मातृत्व के अनोखे आनंद में डूबी हुई थी। बधाइयों का ताँता लगा हुआ था। बच्चे के पैदा होते ही घर में खुशियों की भरमार जो हो गई थी। । अचानक घर से बाहर तालियों की थाप पर बहुत से स्वर गूंज उठे। 'अम्मा तेरा बच्चा बना रहे। तेरे आँगन में फूल खिलें । हाय हाय कितनी देर हो गई बालक कू तो दिखा दे । नहीं तो घर में ही घुस जाएँगे । फिर न कहियों हम ऐसे हैं ।' पुन
:वही तालियों की थाप। अंतिम वाक्य सुनते ही जच्चा काँप उठी। समस्त ज़ोर लगाकर चिल्लाई -"इनको जो चाहिए दे दो। बच्चा तो अभी अभी सोया है।"
"अइयो रामा तेरे कलेजे का टुकड़ा हमारा भी तो कुछ लगे है।ठप्प ठप्प … चट्ट चट्ट --कैसे छोड़ देंगे अपनी जात के को।" एक बोली
"ला-- ला हमारी गोद में डाल दे।" दूसरी बोली।
बच्चे को उठाए लड़खड़ाती जच्चा बाहर आई। कातर स्वर में बोली-"न न अभी नहीं। कुछ दिन मेरी गोदी में खेलने दो। कितनी मुश्किल से गोद हरी हुई है । इसके बिना मैं मर जाऊँगी। कैसा भी है मेरा खून है।"
"माई बड़ी -बड़ी बात न कर । क्या तू इसके लिए अपने पूरे समाज से लड़ सकेगी ।"
"हाँ हाँ क्यों नहीं!। आज तुम अपने अधिकारों की बात करती हो तो इससे तो इसका अधिकार न छीनो। माँ -बाप और घर से उसे अलग करके तुम्हें क्या मिलेगा!"
"अरी प्रधाना तू क्यों चुप है। कुछ बोलतीं क्यों नहीं! तू तो पढ़ी लिखी है । मेरी समझ में इसकी बात धिल्लाभर ना आ रही। "प्रधाना की साथिन ही हाथ नचाते बोली ।
प्रधाना दूसरी दुनिया में ही खोई थी । ‘अपने से अलग करते समय माँ ने उसे कितना चूमा चाटा था । आँचल फैलाकर रुक्का बाई से दया की भीख मांगी थी। पर वह न पिघली तो न ही पिघली । माँ की पकड़ से खीचते हुए वह उसे दूर बहुत दूर ले गई।’उसकी आँखों से दो आँसू चूँ पड़े।
"अरे किस दुनिया में खो गई।" उसकी साथिन ने झझोड़ते हुए कहा।
प्रधाना ने चौंक कर जच्चा की ओर देखा । वह एक माँ की तड़पन देख चुकी थी। एक और माँ को बिलखता देखने की शक्ति उसमें नहीं थी।
उसने एक पल गोद में लिए जच्चा को ऊपर से नीचे तक देखा। फिर दृढ़ता से बोली-‘हम यहाँ बच्चे को आशीर्वाद देने आए हैं उसे लेने नहीं।’
2-धन्ना सेठ
“ आज पहला लॉक डाउन ख़तम होने वाला था।पर उससे पहले ही दूसरे लॉक डाउन की घोषणा हो गई । है।यह तो ३ मई तक चलेगा ।”
“हाँ सिम्मी , पिछले महीने का पैसा तो बाई को दे दिया है ।उसने तो १९ तारीख तक ही काम किया था पर पप्पू के पापा तो इतने रहम दिल हैं कि क्या बताऊँ !बोले- पूरे माह का ही दे दो। सो भइया 10 दिन का ज्यादा ही उसे मिल गया ।लेकिन इस माह तो पूरे महीने काम पर बाई नहीं आएगी सो उसे तनख्वाह देने की कोई तुक ही नहीं ।”
“लेकिन बाई का तो कोई कसूर नहीं ।चाहकर भी न आ सकी ।”
“भई मैं तो सब काम नियम -कायदे से करती हूँ।”
“शकीला ,कभी -कभी मानवीयता की खातिर नियम- कायदे ताक पर रखने पड़ते हैं ।२-3 हजार देने से न तुझे कोई कमी होगी न घर भरेगा पर बाई के बच्चों का पेट भर जाएगा ।उनके चेहरे एक बारगी खिल उठेंगे ।”
“मैंने क्या उसके पूरे कुनबे का ठेका ले रखा है!”शकीला चिढ़ सी गई।
“ऐसी ही बात समझ। साल- साल बाई हमारे काम करती है । एक दिन न आएं तो कितनी परेशानी हो जाती है । फिर उनकी परेशानी में हम काम क्यों न आएं ।यह तो फर्ज बनता है ।”
“फर्ज तो तभी निभाया जाता है जब किसी की औकात हो ।तुम्हारा क्या! तुम तो सिठानी हो--- दो-दो होटल चलते हैं ।”
“ लोकडाउन में होटल तो बंद हैं। पर दो कर्मचारियों के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था होटल में कर दी है। वक्त -बेवक्त शायद वे काम आ जाएँ ।”
“तो हुआ क्या फायदा उनसे--- तुम्हारे घर तो खाना बनाकर ला नहीं सकते ।बाहर निकलने पर भी तो पाबंदी है।”
“फायदे की न पूछ --इतना फायदा हो रहा है--- इतनी संतुष्टि मिल रही है कि कह नहीं सकती ! प्रवासी मजदूरों के तो खाने के लाले ही पड़ गए हैं ।नौकरी जो छूट गई !उनके कष्टों को सोच-सोच कर तो मेरे रोयें खड़े हो जाते हैं ।मेरे दोनों कर्मचारी १०० के करीब मजदूरों को दोनों वक्त का खाना बनाकर खिलाते हैं । सोच तो कितनी दुआएं देते होंगे ।”
“भगवान् जाने दुआएं देते होंगे भी! पर यह तो वही बात हुई आ बैल तू मुझे मार । पैसा तो आपदा में सोच-समझ कर ही खर्च करना होगा। सुनते हैं कोरोना दानव से निबटने के लिए सरकार को बड़ी -बड़ी फैक्ट्रियों के मालिकों से मदद चाहिए । मालिक भी अपने कर्मचारियों की जेब में ही सेंध लगाएंगे। कहने को तो पप्पू के पापा बड़ी सी फैक्टरी के मैनेजर हैं ,पर उनकी जेब पर भी न जाने कब छापा पड़ जाये ।ऐसे में तो बाई की तनख्वाह देने का सवाल ही नहीं उठता ।तेरा क्या तू तो धन्ना सेठ है ।तुझे ही दान-पुण्य का काम मुबारक हो ।
“दान पुण्य के लिए धन्ना सेठ होना जरूरी नहीं शकीला --इसका सम्बन्ध तो दिल की अमीरी से है ।”
समाप्त