संदेह के घेरे/ सुधा भार्गव
जावित्री की साध थी कि
डाक्टर बेटे के लिए बहू भी डॉक्टर हो और
वह साध पूरी हो गई। पता लगते ही
बधाई देने वालों का तांता लग गया। विवाह के
अवसर पर सावित्री बोली –जावित्री, भगवान ने तेरे मन की मुराद तो पूरी कर दी।
-हाँ दीदी,कल तो गीत संध्या में बहू का नाच होगा।
-तेरी बहू को यह भी हुनर
आता है ।
-हाँ !खाना बनाना जरा कम
आता है सो वह मैं सीखा दूँगी। मैं तो अपनी बहू को सर्वगुणसम्पन्न देखना चाहती हूँ
।
बहू का डांस होने पर सब ने
भूरि-भूरि प्रशंसा की और सास ने सुना भी दिया –बहू ,परसों जेठ जी के लड़के की शादी
है उसमें भी तुम्हें डांस करना है ।
विवाह की भीड़ छंट जाने पर
रुनझुन ने चैन की साँस ली। डाक्टर होने के नाते जो दूसरों की साँस बनाए
रखती थी आज उसी का दम घुट रहा था। बचपन में कभी कत्थक सीखा था। शौक –शौक में स्कूल
में भी डांस कार्यक्रमों में भाग लेती थी परन्तु जीवन के रंगमंच पर उसको इस कदर
नाचना पड़ेगा उसने सोचा भी न था। डर था दूसरों के इशारों पर नाचना उसकी नियति न बन
जाए। इस डर से छुटकारा पाने के लिए उसने सरकारी अस्पताल में नौकरी की अर्जी दे दी
। तकदीर से इंटरव्यू देने भी उसे जल्दी जाना पड़ा। जिस दिन उसे इंटरव्यू देने जाना
था उसी दिन डाक्टर पति का जन्मदिन था। पिछले वर्ष से कुछ ज्यादा ही लोगों को
निमंत्रित किया गया था जिसका उद्देश्य जन्मदिवस मनाना नहीं अपितु यह दिखाना था कि
हमारे घर की बहू ,डॉक्टर होने के साथ –साथ घर के कार्यों और आतिथ्य
सत्कार में कितनी प्रवीण है।
बेटे ने दबे स्वर में कहा –मम्मी
,जन्मदिन एक दिन बाद भी मनाया जा सकता है कल तो रुनझुन का
इंटरव्यू है।
-अरे इंटरव्यू है तो क्या
हुआ ,एक नहीं तो दूसरा। मेरी बहू के लिए तो हजार इंटरव्यू इंतजार
करेंगे। जन्मदिन तो वर्ष में एक दिन ही आता है,उसे कैसे टाला जा सकता है!
-घर में इतने नौकर-चाकर
हैं काम में कोई फर्क नहीं पड़ेगा ,परंतु रुनझुन इंटरव्यू देने नहीं गई तो उसको बहुत
फर्क पड़ेगा। बेटे ने समझाने की कोशिश की।
-ना बाबा ना! बहू के बिना
एक मिनट नहीं चलेगा,बहुत कर लिया मैंने काम। ले बहू,
घर की चाबियाँ और सँभाल इस घर को।
रुनझुन से कुछ कहते न बना।
एक तरफ सास उसके गुण गाते नहीं अघाती थी दूसरी ओर उसे अपनी बीन पर नचाना चाहती थी
। क्या वह नाच पाएगी। संदेहों ,सवालों के बीच वह घिरी हुई थी।
समाप्त