वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

शनिवार, 17 नवंबर 2012

मेरी दो अन्य लघुकथाएं



|1| दुल्हन /सुधा भार्गव








वह नई नवेली  दुल्हन शर्मायी सी सुबह से कूड़े के ढेर पर बैठी थी ।उसके चारों ओर कौवे मंडरा रहे थे ।वह कौवे उड़ाती जाती और बड़बडाती   --- -अरे नाशपीटों ,कुछ तो छोड़ दो ।दो दिन से भूखी हूँ ।  थोड़ी देर में मेरा पति भी  रोटियाँ लेकर आ जाएगा  ।कुछ मैं जुगाड़ कर लूंगी कुछ वह कर रहा है ।

बीच -बीच में फटी साड़ी  से अपने शरीर को ढांपने की कोशिश  करती कि कहीं ये उड़ें तो दूसरे कौवे  न आन बैठें ।इन्तजार करते -करते संध्या ढलने को हुई पर न उसका स्वामी आया और न ही उसे रोटियाँ मिलीं ।उस बेचारी को क्या मालूम था कि  दोनों ही बंद हैं -एक बोतल में तो दूसरी  साहूकार की बोरी  में ।



|2| आलतू -फालतू 


विवाह का निमंत्रण कार्ड 


-अरे पुत्तर , तेरी बहन की शादी के दिन करीब हैं ।लिस्ट बना ली क्या ?किस किस को शादी के निमंत्रण  कार्ड भेजे जायेंगे ।
--हाँ पप्पाजी ,बस एक सरसरी निगाह डाल लो ।
-ये क्या---- !ऐसे बनती है लिस्ट ?
--तो ----।
--लिस्ट में पहले नंबर पर वे आते हैं जिन्हें हमने समय -समय पर उपहार दिए हैं ।नंबर दो में वे शामिल रहते हैं जिनसे मेरा मतलब पड़ता है या  पड़ने वाला है ।
-ठीक है जी ।

-कुछ लोग खाने के बड़े शौकीन होते हैं ,उन्हें जरूर बुलाना है ।खायेंगे -पीयेंगे  ,हमारे गुणगान करेंगे ।भेंट -शेंट भी अपने हिसाब से कुछ तो देंगे ही ।
--पप्पा जी ---ये लिस्ट तो हनुमान जी की पूंछ होती जा रही है ।इसे सभाँलेगा कौन ?
--घबरा क्यों रहा है ---।आज भी कुछ की सोच है -बहन -बेटी की शादी में काम करने जाना चाहिए न कि  खाने को ।ऐसे लोगों को तो जरूर  ही बुलाना है ।
--लेकिन कार्ड तो तब भी बच  जायेंगे |
--बच  जाने दे ----ये फुटकारियों  के काम आयेंगे ।
--फुट करिया ----इनका नाम तो मैं पहली बार सुन रहा हूँ ।
--हाँ --हाँ फुट करिया !ये वे लोग हैं जो आना तो चाहते हैं पर हम नहीं बुलाना चाहते ।
-तो इन्हें भी भेज  दूँ कार्ड ।
-मूर्ख कहीं का !शादी से पहले कार्ड मिल गए तो आन टपकेंगे । अभी तो मैं बहुत व्यस्त हूँ फालतू समय में भेज देंगे इनको  ।चिंता न कर --पुत्तर|



(कर्म निष्ठा मासिक पत्रिका  में प्रकाशित )

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4 टिप्‍पणियां:

  1. दोनो लघुकथाये गहन अर्थ समेटे

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  2. दोनों ही कथाएं अपने आप में हमारी सोच और व्यवस्था पर व्यंग्य करती हुई नजर आ रही है . अर्थपूर्ण कथाओं के लिए आभार !

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  3. आप सब ने लघुकथाओं को पढ़कर सार्थक टिप्पणी दीं ,इसके लिए आभार ।

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  4. काफी गहन चिन्तन के बाद लिखीं हैं ये कथाएं दीदी ।

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