कला प्रेमी
सुधा भार्गव
वह नई नवेली दुल्हन !ससुराल के रीति रिवाजों को सब समय गौर से परखा करती । लोगों की आदतों से जल्दी ही परिचित होना चाहती थी ताकि सबसे अपना तालमेल बैठा सके। जब से आई है डाइनिंग टेबल पर एक से एक सुंदर क्रॉकरी को देख हतप्रभ सी रह जाती है। इस्तेमाल होने के बाद नन्द बाई उसे बड़ी सावधानी से धोकर अलमारी में रख देती। दूसरे दिन फिर नई क्रॉकरी निकल आती है । आकर्षल बेल बूटेदार डोंगों में भरी जायकेदार सब्जी दुल्हन की भूख को कहीं ज्यादा बढ़ा देती। उसने सोचा-' कुछ दिनों की बात है फिर तो साधारण कप -प्लेट निकल ही जाएँगे। कौन रोजमर्रा में इतनी कीमती क्रॉकरी इस्तेमाल करता है।' पर यह सिलसिला रुका ही नहीं। क्रॉकरी को बदल बदलकर दुबारा इस्तेमाल किया जाने लगा। यह परिवर्तन हर दिन नयेपन का अहसास दे जाता।
एक दिन दुल्हन बोली-"माँ जी सारी क्रॉकरी बहुत ही खूबसूरत है। मुझे तो हर समय डर लगा रहता है टूट न जाए!फिर मेहमानों के लायक तो रहेगी नहीं। ऐसा करती हूँ इन सबको तो करीने से अलमारी में सजाकर रख देती हूँ। साधारण क्रॉकरी मुझे बता दीजिये। कल सुबह की चाय मैं बनाऊँगी ।''
सास ने सहर्ष अनुमति दे दी। पर अपने मन की बात कहे बिना न रही। अपने स्वर को भरसक मृदुल बनाते हुये बोली- "बहू, टूटे तो टूट जाने दे। दूसरी आ जाएगी। पर यह कहाँ का न्याय है घर वाले सस्ते कप -प्लेट में चाय पीएं और मेहमान महंगी क्रॉकरी में।खाना बनाना ही तो काफी नहीं उसे कैसे परोसा जाए यह भी तो एक कला है। इससे खाने का स्वाद दुगुना हो जाता है।"
अगले दिन बहू सुबह उठते ही स्टोर में गई। शादी में मिले पीहर के उपहारों को खोला। मनमोहक रंगबिरंगा एक टी सैट देख खिल उठी। उसे धोया और मेज पर सजा दिया। नाश्ता व चाय बनाकर बड़ी बेसबरी से घर वालों के आने का इंतजार करने लगी। नियत समय से पहले ही सब कुर्सियों पर आन विराजे। चाय की तलक कम सता रही थी ,नई बहू के हाथ की चाय पीने का शौक ज्यादा लग रहा था।मेज के नजदीक जाते ही देवर पुलकित हो उठा- "हुर्रे-- हुरे क्या नया -नया चमकदार टी सैट !
चाय की चुसकियाँ लेते ही ससुर जी बोले-"भाई इतनी अच्छी चाय तो मैं पहली बार पी रहा हूँ।"
दुल्हन प्यार पगे शब्दों में खो सी गई। सास हौने हौले मुस्करा रही थी।
समाप्त