वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

सोमवार, 10 अप्रैल 2023

प्रयोगात्मक लघुकथाएं

 लघुकथा कलश का  प्रयोगात्मक लघुकथा विशेषांक

2023  में प्रकाशित मेरी दो लघुकथाएं -

साथ ही योगराज प्रभाकर जी  का बहुत बहुत धन्यवाद जिनके कारण लघुकथाकारों को नई शैली की लघुकथा लिखने का उत्साह मिला और वे सफलता पूर्वक लिखी गईं।  


शादी का ठप्पा व अकेलापन