कितनी द्रौपदियाँ!/सुधा भार्गव
झूरी किसान के दो गबरू जवान बेटे थे । वह दोनों की शादी एक साथ कर देना चाहता था पर शादी के लिए कोई लड़की ही नहीं मिल रही थी।उसके गाँव में तो लड़कियों का अकाल था । वर्षों से न वहाँ कोई कली खिली थी न पायल की रुनझुन सुनाई दी। होता भी कैसे । यह श्राप तो गांववालों ने खुद ही ओढ़ लिया था जब उन्होंने तय किया कि दुनिया में आँखें खुलने से पहले ही लड़की को हमेशा-हमेशा के लिए सुला दिया जाएगा । इसीलिए आस –पास के गांव वाले अपनी बेटी वहाँ ब्याहना भी नहीं चाहते थे । बड़ी मुश्किल से किसान को एक लड़की मिल गई मगर उसका बाप एक भारी भरकम रकम माँग रहा था । किसान की हिम्मत जबाब दे गई । वह दो बेटों के लिए दो लड़कियां जुटाने में अपने को असमर्थ पा रहा था।
किसान को परेशान होता देख बड़ा बेटा बोला –बापू चिंता न कर । एक से ही काम चल जाएगा ।
किसान ने भी सोचा –बेटा ठीक ही कह रहा है । चौके चूल्हे से तो बाप –बेटों को छुटकारा मिलेगा ।
शादी हो गई और दुल्हन घर आ गई। बड़े भाई के साथ उसकी शादी हुई मगर उसने सुहागरात मनाई छोटे भाई के साथ । किसान को मालूम हुआ तो हैरत में रह गया।
-इसमें हैरानी की क्या बात है बापू!मैंने पहले ही कहा था एक से काम चल जाएगा। छोटे के पास मैंने ही दुल्हनिया को भेजा था ताकि उसे विश्वास हो जाए कि मेरी जोरू पर उसका भी हक है।