वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

शनिवार, 4 मई 2024

स्नेह भरे वे पल

 बलराम भाई जी के घर पर धरना


कुछ दिन पहले भाइयों से मिलने दिल्ली जाना हुआ। बलराम भाई जी से भी मिलने गई नोएडा उनकी नए आवास स्थल पर। वैसे जब वे अपने नए घर में गए तो मुझे एक साल तक सूचना नहीं दी लेकिन मैंने भी पता लगा लिया और चिलचिलाती धूप में उनके दरवाजे पर दस्तक दे ही दी। स्नेहभरे आत्मीयता के दो घंटे कैसे गुजर गए पता ही ना लगा। कुछ घर बाहर की बातें हुई कुछ समय लघु कथा पर चर्चा हुई। बातों से तो पेट नहीं भरा लेकिन भाभी जी के हाथ की बनाई गरम गरम चाय और पकोड़े खाकर बड़ी तृप्ति हुई। दुबई की खास मिठाई खाकर तो मजा आ गया ।उससे पहले वह मिठाई मैंने कभी नहीं खाई थी। फिर फलों के खाने का सिलसिला चलता रहा जब तक कि उनसे विदा न ले ली। बस इसी तरह हम अपनों से मिलते रहें ।











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