वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

रविवार, 14 दिसंबर 2014

मेरी दो लघुकथाएँ



1-भिखारी /सुधा भार्गव 


उस दिन मिसेज देसाई के घर किटी पार्टी का आयोजन था। इस पार्टी की मिसेज भल्ला भी सदस्य थीं पर वे किसी कारणवश न आ सकी। अन्य महिला सदस्यों में गपशप का बाजार गर्म होने लगा।
-भई ,मिसेज भल्ला ने तो अपनी लड़की की शादी में कमाल कर दिया।  बरातियों की खातिरदारी में कोई कसर न छोड़ी । दावत में एक से एक बढ़कर मद्रासी खाना ,पंजाबी खाना, गुजराती खाना।  चाट- पकौड़ी की तो भरमार थी। मिठाइयों का क्या कहना –संदेश –रसगुल्ले, गुलाबजामुन मिठाइयाँ,कुल्फी- आइसक्रीम क्या नहीं था। बराती तो अंगुली चाटते रह गए। कह रहे थे हमने तो इससे पहले ऐसा स्वादिष्ट भोजन कभी किया ही नहीं।
-हर बराती को ऊनी सूट का कपड़ा दिया ताकि सर्दियों में कोट-पेंट सिलवा सकें और महिला बरातियों को बड़े सुंदर कश्मीरी शॉल दिये।प्रसन्नता से उनके चेहरे कैसे खिले पड़ रहे थे। उन्होंने तो ऐसे कीमती कपड़े देखे भी न होंगे ।दूसरी महिला बोली। 
- लड़के की तो किस्मत चमक गई। दहेज में तो सुना है कार भी दी है। -अरे कार के साथ- साथ इतना सामान दिया है कि घर ही भर गया होगा। बर्तन-भांडे,फर्नीचर ,पलंग से लेकर शादी -जेवर में कोई कमी न छोड़ी। तीसरी से भी चुप न रहा गया।
-तुम ठीक कह रही हो। उनके दामाद को सालों कुछ खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके अलावा ससुराल वाले जब भी मिलेंगे उसकी झोली में कुछ न कुछ तो डालेंगे ही। चीकू की मम्मी हाथ मटकाते हुए बोली। 
पास ही बैठा चीकू उनकी बातें बड़े गौर से सुन रहा था।अंतिम वाक्य सुनते ही उसके सामने फटी पुरानी झोली वाले भिक्कू भिखारी का चेहरा घूम गया, वह बड़ी बड़ी आँखें झपकाते हुए बेचैनी से बोला -माँ --माँ --दामाद क्या भिखारी है! 


2-वह वृद्ध और वह वृद्धा/सुधा भार्गव

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वह वृद्ध और वह वृद्धा-एक रिटायर्ड जज तो दूसरा रिटायर्ड प्रिंसपिल । भरापूरा परिवार पर नियति के कठोर थपेड़ों के कारण अकेले रहने पर मजबूर हो गए। इस अकेलेपन को बांटने के लिए जमाने के डर से दोनों सांझ को पार्क मे मिलते,बातें करते और घर की ओर लौट पड़ते। 
रात को नींद उछटने पर मोबाइल लेकर बैठ जाते।मोबाइल के कारण इनकी नज़दीकियाँ बढ़ती गईं। उस पर घर बाहर की बातें शुरू हो जाती। अतीत को कुरेदते और सुखद पलों को चूमते। रातें सुहानी हो गई। लोग दिन का इंतजार करते हैं पर वे रात का इंतजार करते थे।     


3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-12-2014) को "कोहरे की खुशबू में उसकी भी खुशबू" (चर्चा-1828) पर भी होगी।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ह्रदय स्पर्श करती अच्छी लघु कथाएं

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