वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

शनिवार, 10 अप्रैल 2010

लघुकथा -महाभारत

लघुकथा
















महाभारत
/
सुधा भार्गव


-जल्दी नहा ----देर हो रही है ---I
-अरे मेरा तौलिया कहाँ है ?
-ले तौलिया ,मगर जल्दी छोड़ बाथरूम I
-चुटकी !----ये तौलिया बांधे कहाँ चली - - - - !पापा बोले I
-बालकनी में - - - - मेरी चप्पल नहीं मिल रही I नंगे पैर नहाया नहीं जाता I
-माँ - - - - माँ मेरी ड्रेस पर तो प्रेस भी नहीं है I बड़की झल्लाई I
-अभी करती हूं - - - जल्दी दूध पीओ I
-टिफिन कहाँ है - - - - - ?
-भागो नीचे - - - बस आ गई I
-स्वटर भूल गई बच्ची !ठंडी हवा चल रही है I
अरे किसनी ,(महरी की छोटी लड़की )जल्दी दौड़ - - - -I चुटकी को स्वटर देकर आ और यह चार्ट ले जा ,उससे कहना --कपूर मैडम को दे दे I माँ का स्वर गूँजा I
टन-टन - - - कर्र- - कर्र - - - -टेलीफोन की घंटी I
किसनी के हाथ में रिसीवर ,नीचे से बोली - - -अम्मा - - - बड़की को जल्दी भेजो ,बस जाता है |

आधे घंटे की यह महाभारत सुनंदा फूफी रोज ही देखती है I एक दिन पानी सर से उतर गया तो बोली -
-कौशल बेटा ,यदि रात में ही बच्चों की ड्रेस हैंगर पर लटका दो तो सवेरे की भयानक चिल्ल -पों से बचा जा सकता है I कम से कम पाँच मिनट बचेंगे I उस समय बच्चे दूध -दवा ले पायेंगे I

-फूफी ,ये बच्चे हैं क्या !कक्षा ६-७ में पढ़ने वाले I आज आने दो ,इनको सिखाऊंगा -कपड़े कैसे रखे जाते हैं I
-बच्चे छोटे हैं I डांटने -ठोंकने से कुछ नहीं होगा I कुम्हला जरूर जायेंगे I अपने सुख -आराम के लिए बच्चों का इतनी जल्दी बचपन छीन लेना ठीक नहीं I आज से मैं इनके कपड़ों का प्रबंध करूँगी i
-आप इनकी आदत बिगाड़ देंगी I
-बच्चों को हुकुम देने ,उपदेश देने से बात नहीं बनती I कुछ दिन वे मुझे करता देखेंगे ,बाद में स्वयं वैसा ही करने लगेंगे I
-ये बच्चे कुछ नहीं सीखेंगे I
-क्यों नहीं सीखेंगे ?तुम्हें मालूम है बच्चे कैसे होते हैं ?
-कैसे होते हैं !
-नकलची बन्दर ! सैंकड़ों वर्ष पूर्व हुए महाभारत में उपद्रव करने वाले और अमन -चैन फैलाने वाले आखिर थे तो किसी के बच्चे ही I बचपन में सीखे हुए को ही उन्होंने मूर्त रूप दिया I

चित्रांकन
सुधा
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