वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

लघुकथा


संरचना -13,2020 वार्षिकी  में मेरी लघुकथा  'पालना 'प्रकाशित हुई है। इसके संपादक वरिष्ठ लघुकथाकार कमल चोपड़ा जी हैं। उनका बहुत बहुत धन्यवाद 

 लघुकथा -पालना
सुधा भार्गव

        पहली किलकारी सुनने से पहले ही अविनाश ने बच्चे का कमरा तो तैयार करवा दिया था पर किसी कारण वश पालना नहीं ख़रीद पाया । बच्चे को माँ के साथ सोते सवा महीना हो चुका था ।अब वह पालना ख़रीदने को बेचैन हो उठा । बच्चे को अलग सुलाने का वह पक्षपाती था ताकि उसका ठीक से विकास हो सके और स्वस्थ रहे ।
उसने एमोज़ोन पर २-३ पालने पसंद किए । पत्नी को दिखाते हुए बोला -
      “इनमें से कोई एक पसंद कर लो।”
     “बच्चे को अभी अलग सुलाने की ज़रूरत नहीं । मैं इसके बिना नहीं सो सकती ।”उसने रोषभरी आँखों से देखा।
      “फिर उसको अपने कमरे में सोने की आदत कैसे पड़ेगी ?”
      “जब समय आएगा आदत भी पड़ जाएगी ।”रुखाई से बोलकर बच्चे की तरफ़ करवट ले ली।
दाल न गलने पर अविनाश झुकता सा बोला -”ठीक है कुछ दिन और सही पर पालना तो पसंद कर दो और हाँ यह भी बता दो उसका तकिया कैसा होना चाहिए ?”
    “मैं अक्सर थक कर माँ की गोद में सो ज़ाया करती ।बिस्तर पर नींद आती ही नहीं थी। माँ तो बैठे बैठे ही न जाने कब कब में झपकी ले लेती। पर उस समय भी चेतन रहती थी। जिधर भी मैं सिर घुमाती ,माँ उसीके अनुसार घुटनों को हिलाकर गड्ढा बना देती और मेरा सर आराम से उस पर टिका रहता।बस तकिया ऐसा ही होना चाहिए ।जरा भी कुनकुनाती तो माँ अपना एक घुटना हिलाने लगती, मुझे लगता मैं पालने में झोटे खा रही हूँ ।फिर सो जाती। एकदम ऐसा ही तकिये वाला पालना खरीद लाओ। हाँ एक चादर भी तो लानी होगी। ।"
     "चादर कैसी हो --वह भी बता दो।"
     "मैं तो माँ की धोती से लिपट कर ही सो जाया करती थी । उसमें उसकी खुशबू जो आती थी ।" मुंह पर मीठी सी हंसी लाते हुए न जाने वह कहाँ खो गई ।
अविनाश पहले तो असमंजस में था फिर एकाएक हंस पड़ा और चुटकी लेते हुए पूछ ही लिया -
    “पालने में कोई म्यूज़िकल टॉय तो लगाना होगा । कैसा खिलौना लाऊँ?
    “ खिलौना भी ऐसा हो जिसमें से माँ की लोरी सा संगीत सुनाई दे और मेरा चुनमुन झट से सो जाए ।”
अविनाश को अब अपनी पत्नी की बातों में आनंद आने लगा था जिसके तार बेपनाह मोहब्बत से जुड़े हुए थे। उसने एक प्रश्न और दाग दिया
    “अच्छा मैडम ,पालने के ऊपर जाली वाली एक छतरी भी तो लगानी जरूरी है जो हमारे बच्चे को मक्खी -मच्छर से बचाये।”
    “हूँ--- छतरी तो माँ के पल्लू की तरह हो तो ज्यादा अच्छा है जो मक्खी- मच्छर से ही नहीं उसे सर्दी-गरमी और लोगों की काली नजर से भी बचाये।"
     अविनाश ने भरपूर निगाहों से पत्नी को निहारा । फिर अपने हाथ में उसका हाथ लेकर बोला--”ऐसा पालना तो तुम्हारे पास पहले से ही है !"
     "मेरे पास ?" विस्मय से उसने देखा।
    “हाँ हाँ तुम्हारी गोदी! गोदी क्या पालने से कम है जिस पर हमेशा तुम्हारी ममताभरी बाहों का चंदोबा तना रहता है। !”
     पत्नी के सूखे होंठ प्रेममयी बारिश की बूँदों से तरल हो उठे ।
     उसने फुर्ती से अपने चुनमुन को कलेजे से लगा लिया । ममता की महक से सोते हुए नवजात शिशु के गुलाबी होठों पर मुस्कान थिरक उठी ।
समाप्त 




1 टिप्पणी:

  1. बच्चे के लिए माँ की गोदी ही सबसे सुन्दर पालना है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण कहानी।

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