वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

रविवार, 2 फ़रवरी 2025

ई-पत्रिका / लघुकथा विशेषांक

https://sahityaratan.com/e-patrika/issue-2-january-2025/ 


                          साहित्य रत्न मासिक ई-पत्रिका 

जनवरी -2025 ,वर्ष -2 अंक 9 पर दृष्टि   डालते ही मैँ अवाक रह गई। आवरण पत्र इतना सुंदर !  एक ही पत्रिका में  147 लघुकथाएं समा गई है। आलेख भी ज्ञानवर्धक हैं। इसमें अतिथि संपादक श्री बलराम अग्रवाल जी का श्रम पूर्णतया परिलक्षित है। साथ ही राम अवतार बैरवा जी का बहुत बहुत धन्यवाद। यह  पत्रिका अपने में अनूठी है। इसका  भविष्य भी बहुत उज्जवल है। इसमें मेरी भी तीन लघुकथाएं प्रकाशित हुई  हैं --- 1-ईनोफ्रेंडली नगीना,2-माटी की पुकार,3-लोहे का देवता






1-ईनोफ्रेंडली नगीना   

चची का पशुप्रेम आजकल कुछ ज्यादा ही परवान चढ़ रहा था। हमेशा गोबर के ढेर से बातें करती नजर आती। आज तो चची के पास गोबर का  ढेर ही नहीं लगा था ,उसमें से मिट्टी   और चूना भी झांक रहा था।  पास में बैठे दो नवयुवक  उसे ईंटों के साँचे में भरकर   धूप में रख देते। वह हैरानी से  कुछ देर तक तो यह तमाशा देखता रहा । फिर रहा नहीं गया और बोला- 

“अरे चची  अभी तक तो तू गोबर मिट्टी के दीपक और देवी देवताओं की प्रतिमा बनाने में व्यस्त थी। अब  यह क्या नया धंधा शुरू !”

“देख तो किसनू बेटा , कितनी सुंदर  ईनोफ्रेंडली  ईंटें बन रही है!”

“ --- इकोफ्रेंडली की बात कर रही हो क्या ?

“हाँ -हाँ- वही !उफ बार- बार  नाम ही दिमाग से नदारत हो जावे है।“

“लेकिन इनका होगा क्या!”

“लो -यह भी बताना होगा!ईंटों से घर बनेगा घर!”

“तब तो  हवा के एक झोंके से ही तेरे गोबर के महल का धूम धड़ाका जरूर  हो जाएगा।” 

“शुभ- शुभ बोल! घर गिरें दुश्मनों के !  प्रोटीन और फाइवर की जुगलबंदी के कारण गोबर की बनी मजबूत ईंट से  तो  आग भी   डर कर भागेगी।   इंद्र  देवता की भी क्या मजाल! उसे तिरछी नजर से देख सकें। “

“ अच्छा ….तब  तो  गोबर की  मांग बढ़ जाएगी!”  

"हाँ रे। मैं भी यही सोचूँ!जैसे ही गऊ माँ  ने  दूध देना बंद किया, निगोड़े लावारिस की  तरह जंगल में छोड़ देवे हैं।  अब कम से कम उसकी दुर्दशा तो न होगी।जय गैया मैया।”

चची के  दोनों हाथ जुड़ गये। हाथ तो किसनू के   भी  जुड़े पर गऊ माँ के लिए नहीं  बल्कि उसके रक्षक के लिये।


2-माटी की पुकार / सुधा भार्गव 

बेटे ने स्पेस इंजीनियरिंग पास कर ली थी । खुशी से मेरे  पैर जमीन पर ही न पड़ते । घर पर आने से पहले ही मैंने सारे मोहल्ले में मिठाई भी बँटवा  दी ।बेटा उछलता हुआ घर आया और आते ही बिना विराम लगाए अपने मन की बात कह सुनाई । अपना सपना साकार करने के लिए उसने तो अंतरिक्ष उड़ान की ट्रेनिंग भी ले ली थी।इसलिए अंतरिक्ष की सैर करके मंगल ग्रह पर जाना चाहता था।   मुझे तो लकुआ मार  गया। सोचने -समझने की शक्ति धराशाई! सालों बाद  बेटा घर पर आया ! मेरे पास रहने की बजाय अंतरिक्ष में जाने के सपने सँजो रहा है !।एक मिनट को तो लगा ---उसका दिमाग खराब हो गया है । अच्छी -खासी अपनी धरती मां को छोड़कर ऐसे ग्रह पर जाने की अवधारणा  जहां न पानी, न हवा ,न खाने को दाना!

मैंने उसे सच्चाई बतानी चाहिए तो उपदेशों की झड़ी शुरू…. पृथ्वी का मिजाज तो ग्लोबल वार्मिंग के कारण बिगड़ रहा है। कुछ दिनों में तो यह रहने लायक भी नहीं रहेगी। इसलिए उसका विकल्प ढूंढना जरूरी हो गया है।

मैं तो उसका मुंह  देखता रह गया। पराए ग्रह की इतनी फिक्र!अपनी धरती का दोहन करते समय क्या  सारी बुद्धि बेच खाई थी! मंगल  ग्रह को खंगालते -खंगालते बच्चू की जवानी निकल जाएगी--- पल -पल जान जोखिम  अलग !अरे इतना समय और दिमाग  धरती  पर खर्च किया होता  तो जाने की ज़रूरत ही न पड़ती। वसुंधरा शस्य श्यामला बनी रहती। अब उसे समझाए कौन!


3-लोहे का देवता/सुधा भार्गव 

वह बड़ा सा मैदान !जिसमें हरी-भरी घास का गलीचा बिछा  था ,पक्षियों के कलरव से अद्भुत संगीत गूंजता था, कुछ दिन पहले वही  युद्ध का अखाड़ा  बन गया। देखते ही देखते  कर्णभेदी … दिल  दहलाने वाली चीखों  से भर  उठा। 

 दोनों तरफ की सेनाएं  युद्ध स्थल में डटी हुई थी। एक तरफ मशीनी मानव की सेना तो दूसरी तरफ मिट्टी मानव की।  युद्ध की शुरुआत मशीनी मानव के कमांडर से हुई  जो सत्ता के नशे में चूर था। मिट्टी मानव सेना शांतिप्रिय थी लेकिन अपनी रक्षा करने के लिए कटिबद्ध   । मशीनी  सेना बिना रुके, बिना थके ,बिना खाए -पीए,रात -दिन ,मिसाइल्स, बम दाग रही थी। उसके  युद्ध कौशल पर कमांडर ऑफिसर फिदा !खून  की नदियां बह चलीं। चारों तरफ मौत का साया !  मिट्टी  मानव की समझ में नहीं आ रहा था .. क्या दोष है उसका ! इसका जवाब तो मशीनी मानव  पर भी नहीं था ।