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पाक्षिक समाचार पत्रिका 15 दिसंबर,2015(सयुक्तांक-साहित्य विशेषांक )में मेरी चार लघुकथाएँ प्रकाशित हुई है। उनमें से एक इस ब्लॉग में पोस्ट कर रही हूँ। इसके संपादक अरविंद गुप्ता हैं और अशोक आन्द्रे जी ने इस अंक के लिए विशेष सहयोग प्रदान किया है। इस अंक के द्वारा साहित्य की विभिन्न विधाओं से संबन्धित रचनाएँ सुधि पाठकों तक पहुंची है जो स्वयं में परिपूर्ण हैं।
पाक्षिक समाचार पत्रिका 15 दिसंबर,2015(सयुक्तांक-साहित्य विशेषांक )में मेरी चार लघुकथाएँ प्रकाशित हुई है। उनमें से एक इस ब्लॉग में पोस्ट कर रही हूँ। इसके संपादक अरविंद गुप्ता हैं और अशोक आन्द्रे जी ने इस अंक के लिए विशेष सहयोग प्रदान किया है। इस अंक के द्वारा साहित्य की विभिन्न विधाओं से संबन्धित रचनाएँ सुधि पाठकों तक पहुंची है जो स्वयं में परिपूर्ण हैं।
सुहागन/सुधा भार्गव
वृद्ध पति पत्नी जल्दी ही रात का भोजन कर लेते, अतीत की यादों को ताजी करते हुए टी. वी. देखा करते। एक दिन वृदधा जल्दी सो
गई पर आधी रात को हड़बड़ाकर उठ बैठी –अरे तुमने मुझे जगाया
नहीं !मेरी सीरीयल छूट गई।
-बहुत खास सीरियल थी क्या?
-हाँ ! तुमने भी तो देखी थी सास भी कभी बहू थी।
उसमें सास –बहू और पोता बहू एक सी साड़ी पहने हुई थी। आजकल उम्र का तो कोई लिहाज ही नहीं।
पर दादी सास लाल पाड़ की साड़ी पहने और कपाल पर सिंदूर की चौड़ी बिंदी लगाए लग बड़ी
सुंदर रही थी।
-तुम भी वैसी एक साड़ी खरीद लो।
-सोच तो रही हूँ पर मैं बूढ़ी न ठीक से पहन सकती हूँ
न चल सकती हूँ।
-कोई औरत बूढ़ी नहीं होती जब तक उसका पति जिंदा होता
है।
झुर्री भरा चेहरा लाजभरी ललाई से ढक गया और प्यार
से बतियाती पति का हाथ थामे सो गई।
सुबह पत्नी
को गहरी नींद में डूबा जान पति ने उसे चादर अच्छे से ओढ़ाई और आहिस्ता से कमरे से
निकल गया।
सूरज सिर पर चढ़ आया ,बेटे का
ऑफिस जाने का समय हो गया। आदत के मुताबिक वह माँ
को प्रणाम करने उसके कमरे में आया –माँ –माँ मैं ऑफिस जा रहा हूँ । उठो न ,अभी तक सोई हो ।
अपनी बात का कोई असर होते न देख उसने माँ को हिलाया
डुलाया। जागती कैसे! वह तो चीर निद्रा में लीन थी।
बेटा दहाड़ मारकर रो पड़ा –माँ बिना कुछ कहे मुझे छोडकर ऐसे
क्यों चली गईं।
-सोने दे –सोने दे !उसे जो
कहना था वह कहकर गई है।वृद्ध पिता थकी आवाज में बोला।
अर्थी सजाई गई। लोगों ने देखा –लाल पाड़ की साड़ी मे लिपटी माथे पर सिंदूरी बिंदी जड़ी सुहागन मुस्कुरा रही
है।
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