वसीयतनामा /सुधा भार्गव
-बेटा ,तू हमेशा
नाराज सा क्यों रहता है ?
-तुमने मेरे तकदीर जो खराब कर दी । न पढ़ाया न
लिखाया न पेट भर किसी दिन खाना नसीब हुआ ।
-कहाँ से देता ----7-7 बच्चों का बाप--।
-देने को तो अब भी तुम्हारे पास बहुत कुछ है ।
बेटे की तीखी दृष्टि ने जर्जर काया को छेक दिया ।
-मेरे पास-- !मैं ही मज़ाक करने को मिला । टूटी
डाली का पका-सड़ा फल ,कब्र में लटके पैर !किस काम का
मैं !
-कहा न ---मेरा जीवन सँवारने के लिए तुम्हारे
पास बहुत कुछ है ।बस अपनी वसीयत बना दो और साफ –साफ लिख दो –मरने के बाद मेरा एक –एक
अंग दूसरों के काम आए पर उसकी कीमत मेरे बेटे श्रवण कुमार को सौप दी जाय ।
-खूब कहा बेटा !क्या सोच है तुम्हारी ! मान
गया तुम्हें--- पर वसीयत क्यों लिखूँ ?
-न –न प्यारे बापू !ऐसा कभी न करना वरना बहुत से
वारिस पैदा हो जाएँगे । फिर तो तुम्हारे शरीर की जो दुर्गति होगी--- –हे भगवान ! क्या
तुम्हें मंजूर है ?
बाप ने याचना भरी नजरें उठाईं । बिगड़ैल घोड़े
सा बेटा हिनहिना उठा-
–रहम की भीख !क्यों ! अपने सुख की खातिर तूने हमेशा के लिए
मुझे भूखे –नंगों के फ्रेम में जड़ दिया । तब
नहीं सोचा ,अब तो परमार्थ की सोच ले ।
* * * * *
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें