वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

सोमवार, 20 अगस्त 2018

लघुकथा


चुंबन
     *सुधा भार्गव 

Free stock photo of love, people, summer, girl


स्कूल से आते ही राधिका ने अपना बैग कोने में पटका और कुर्सी पर धम्म से बैठती बोली-    
    “माँ माँ --आज मैं बहुत थक गई हूँ।”
    “मैं अभी रानी बिटिया की थकान मिटाती हूँ।ठंडी -ठंडी ठंडाई लाती हूँ।’’
    “ओह माँ ,मुझे कुछ नहीं खाना –पीना।’’
    बच्ची को व्याकुल देख माँ बेचैन हो उठी। उसने उसका  मुखड़ा अपने हाथ में लिया और गाल पर अपने प्यार की मोहर लगा दी।
    “अरे ऐसे नहीं। तुम्हें तो माँ  प्यार  करना भी नहीं आता। रौनक की तरह गालों को नहीं मेरे होंठों पर प्यार करो। ”
    “क्या--?वह चौंक पड़ी। लगा जैसे गरम तवे पर हाथ दिया। “यह रौनक कौन है?”उसने राधिका को पकड़कर बुरी तरह झिंझोड़ डाला।
    “माँ का यह रूप देख राधिका सहम गई। वह समझ न सकी लाड़-दुलार करते -करते  माँ को एक पल में क्या हो गया!
    पत्नी की ऊंची आवाज सुन उसके पापा भी कमरे से बाहर निकल आए। राधिका  उनके पीछे जा छिपी।
    “पापा मुझे बचा लो। मैंने कुछ नहीं किया।’’ वह कातर स्वर में बोली।  
माँ को उसका यह रक्षा कवच जरा भी न सुहाया और पीछे से बुरी तरह खींचती फुफकार उठी-
    इतना तो बता दे---- यह रौनक है कौन ?”
    भयभीत निगाहों से उसने पापा की ओर ताका मानो जाल में फंसी चिड़िया अपने बचाव की भीख मांग रही हो।
   “बेटा, बता दो सब कुछ  अपनी माँ को ,डरने की कोई बात नहीं ।’’ उन्होंने ढाढ़स बँधाया।
   “रौनक—---रौनक -- वह—वह तो मेरी  कक्षा में ही पढ़ता है। कठिन सवाल एक मिनट  में ही हल कर देता है। परसों  अगर मेरी  सहायता नहीं करता तो टीचर जी की बड़ी डांट पड़ती।’’ राधिका रुआंसी सी हो गई।
    “अब उससे बात करने की भी जरूरत नहीं। समझीं तुम । माँ ने उंगली दिखाकर राधिका को डपटा।’’
    ‘पर क्यों?” राधिका ने जानना चाहा।
    “वह अच्छा लड़का नहीं है।’’ माँ ने कहा।
    “पर आप तो उससे कभी मिली भी नहीं ,आपको कैसे पता ?सब उसकी तारीफ करते हैं। फिर वह बुरा कैसे हो गया!?”राधिका ने जानना चाहा।
    “मैंने कह दिया न उससे दूर रह बस।”माँ ने जैसे फतवा जारी कर दिया।  “फिर मेरी मदद कौन करेगा पढ़ाई में—रोज मैडम सजा देगी।’’ वह रोने लगी ।
    “देखो जी इतनी जल्दी किसी निर्णय पर न पहुँचो। पहले स्कूल जाकर ठंडे दिमाग से बात कर लो। अपनी बेटी पर थोड़ा तो विश्वास करो।’’ राधिका के पापा बोले।
    राधिका की माँ को पति की बात फूटी आँख न सुहाई । वह रात भर शक के पिजरे में कैद करवटें ही बदलती रही। उधर राधिका भी सुबकते- सुबकते न जाने कब-कब में  सो गई। इसका अंदाजा माँ को तनिक भी न हुआ पर भीगा तकिया उसके दुख की कहानी बता रहा था।
   अगले दिन माँ प्रिंसपिल के कमरे में बेटी को खींचते हुए ले गई और दहाड़ी –“आप तुरंत रौनक  को बुलवाइए। उसकी कैसे हिम्मत हुई कि वह मेरी बेटी के होंठों को चूमें। आपने कैसे-कैसे बच्चों को इस स्कूल में रख छोड़ा है। ”
   प्रिन्सिपल हैरान से बोले –“बहन जी आपको जरूर कोई हलतफहमी हो गई है। वह नादान तो निहायत मासूम और पढ़ाकू बच्चा है।”
    “मासूमियत की बात छोड़िए –आजकल के बच्चे तो हमारे भी बाप हैं। उम्र से पहले ही बहुत कुछ सीख जाते हैं।”
    “मेरी  बात का विश्वास नहीं तो मैं अभी उसे बुलाता हूँ। आप शांति से तो बैठिए।”प्रिंसीपल ने राधिका की माँ से कहा।
    कुछ ही देर में रौनक ने  आते ही प्रिंसपल और राधिका की माँ से हाथ जोड़कर नमस्ते की।  
    “बेटा, राधिका तुम्हारी ही क्लास मैं है न?”  
    “जी ,मैं उसी के पास बैठता हूँ। वह मेरी दोस्त है। रौनक ने सहजता से कहा।”
    ‘कल क्या तुमने उसके होंठों को चूमा था?”
    “मैंने तो प्यार किया था।’’रौनक ने बिना किसी झिझक के कहा।
    “प्यार ऐसे करते हैं,यह किसने बताया?”प्रिंसिपल ने पूछा। “मेरे  मम्मी-पापा तो ऐसे ही प्यार करते हैं ।”   
    “ठीक है रौनक। अब तुम जाओ।” प्रिन्सिपल ने कहा।     
    रौनक के जाते ही राधिका की माँ अपना सिर पकड़कर बैठ गई।
    एकाएक उसकी आँखों के सामने चलचित्र की भांति एक के बाद एक दृश्य आने जाने लगे-- ऑफिस से आते ही पति का उसे बाहों के घेरे में लेना,चेहरे और होंठों पर चुंबनों की बारिश। सोफे पर सटकर बैठना,बेटी का टुकुर टुकुर देखना।
    राधिका की माँ अंदर ही अंदर शर्म से गड़ी जा रही थी । उसे लग रहा था ,जैसे बेटी के साथ-साथ रौनक भी उन्हें यह सब करता हुआ देखता रहा है।
    चश्में से झाँकती प्रिन्सिपल की दो आँखें उसके चेहरे पर निरंतर आते जाते रंगों को घूर रही थीं। 
( #लघुकथाचौपाल-32(भाग-एक) को इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है : https://www.facebook.com/utsahi/posts/10212327842448236 )



15 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही खुबसूरत
    बहुत उम्दा लिखा है.
    Raksha Bandhan Shayari

    जवाब देंहटाएं
  3. मर्मस्पर्शी लघु कथा । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी लिखी कोई रचना  सोमवार 5 अप्रैल 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी लिखी रचना का पुनः प्रकाशन "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 05 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  6. गज़ब .... नन्हे बच्चों का कोमल मन अपने बड़ों का अनुकरण करता है बेहतरीन कहानी, हमारा आचरण हमारा व्यवहार हमारे बच्चों में प्रतिबिंबित होता है। सार्थक संदेश।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  7. कई संदर्भो को रेखांकित करती सुंदर लघुकथा, मुझे ऐसा लगता है, बचपन में बच्चे जो कुछ भी देखते है,समझते है,वह ताउम्र एक इंसान के स्वभाव में परिलक्षित होता रहता है, हां कुछ एक लोग समय के साथ भी सीखते हैं,परंतु परवरिश के माहौल का बड़ा फर्क पड़ता है, अतः हमें अपना व्यवहार संयमित रखना चाहिए । सारगर्भित संदेश ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत गहराई वाला लेखन...। खूब बधाई

    जवाब देंहटाएं
  9. बच्चे तो बड़ों का अनुसरण करते हैं बड़ों को ही चाहिए कि अपना व्यवहार संयमित रखें और बच्चों को अनदेखा न करें...
    बहुत सुन्दर संदेश देती सार्थक लघुकथा।

    जवाब देंहटाएं
  10. सही कहा हम जो करेंगे बच्चे उसी का तो अनुकरण करेंगे

    जवाब देंहटाएं
  11. सशक्त कथा जो सोचने पर विवश करती है। सादर 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं