वह आयेगा / सुधा भार्गव
जीजी ,जीजाजी कैसे हैं ?
-ठीक नहीं |
-कनाडा से कमल को बुला लो । उसे गये बहुत दिन हो गये । कोई तो चाहिए - - - आप अकेले जीजाजी को कैसे सम्हांलोगी ।
-हाँ ,सोच तो रही हूं।
-पर वह आएगा नहीं-- एक बार जो चला जाय वह आता है क्या ! यहाँ इतना पैसा भी तो नहीं मिलता ---पैसा ही तो सबकुछ है।
काशी मौन थी । उसका विश्वास अटल था --'वह आएगा ।
सुबह होते ही आदत के मुताबिक कम्प्यूटर पर जा बैठी।स्काई पी पर क्लिक कर दिया । आवाज गूंजी- - -
-हैलो माँ !राम -राम ,कैसी- - -- हो ?
-मैं तो ठीक हूं पर तुम्हारे पापा अस्वस्थ हैं । अब तो भारत भी बहुत तरक्की कर रहा है । यदि जरा भी तुम्हारा स्वदेश लौटने का इरादा हो तो देरी मत करो । पके फलों को टपकने में क्या देर लगे ।
-ओह माँ !चिंता न करो। बेटा छोटा सा उत्तर देकर खामोश हो गया।
खामोशी तलवार की तरह काशी की गर्दन पर लटक गई --कहीं वह बच्चों से ज्यादा आशा तो नहीं कर रही । वह दिन उसकी स्मृति में डोल गया जब बेटा एयर पोर्ट में घुसने से पहले बोला था --
--माँ इतने चाव से मुझे विदेश भेज रही हो ।पर एक बार मैं गया तो लौटने की ज्यादा उम्मीद न करना।
व्याकुलता ने कुछ क्षणों को अपना सिर अवश्य उठाया पर शीघ्र ही उसके विश्वास के आगे झुक गया रोम -रोम पुकार उठा -वह आएगा----वह आएगा - - - -।
सूर्य की लाली फैलते ही उस दिन मोबाईल बज उठा - - -
-माँ मैं आ रहा हूं-- वह भी एक माह को ।
-तू आ रहा है ---- -!एक पल को दिवाली सी रौनक उसके मुख पर छा गई ।
बेटा आया ।पन्द्रह दिन कम्प्यूटर से चिपका बैठा रहा। फिर बंगलौर -हैदराबाद की उड़ान भरने चला गया । लौटने पर माँ के आँचल की छांह ढूढ़ने लगा - - - -माँ --माँ --कहाँ हो मुझे बैंगलौर में नौकरी मिल गई है । दो माह बाद भारत आना है ।
-इतनी जल्दी- - - !१५ साल की तेरी गृहस्थी ,बसा -बसाया घर! कैसे सब उठा सकेगा ।
-जब आना है तो बस आना है ।
माँ का विश्वास मुस्काने लगा ।
--अच्छा माँ ,एक बात बताओ -दिल्ली में मामा -मौसी ,बुआ --सारी रिश्तेदारी है । इनका मोह छोड़ना सरल नहीं।अब आप कहाँ रहोगी -दिल्ली या बैंगलौर !
-बैंगलौर ,तेरे पास ! तू मेरे लिए कनाडा छोड़कर भारत आ सकता है तो क्या मै दिल्ली छोड़कर बैंगलौर नहीं रह सकती।
बेटा निहाल हो गया ।
आत्मीयता के अनमोल क्षणों में संतोष का सैलाब उमड़ पड़ा।
विश्वास जीत गया था ।
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yah vishwaas mere chehre per muskaan aur aankhon mein khushi ke aansu de gaya
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तियो ने आँखे नम कर दीं…………विश्वास की जीत हो गयी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुखद एहसास करती सुन्दर कहानी ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुखद एहसास करती सुन्दर कहानी|
जवाब देंहटाएंनवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ| धन्यवाद|
यथार्थबोध की लघुकथा, जिसका अन्त आदर्शोन्मुख है । ईश्वर करे ऐसा ही हो, पर होता नहीं ।
जवाब देंहटाएंrishton ke kchche dhagon me piroyi hui sundr rchna bdhai
जवाब देंहटाएंसकारात्मक जीवंत अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंभारतीय माता-पिता की अपनी सन्तान से बँधी आशाओं से जुड़ी रचना। वस्तुत: हो यह रहा है कि स्वयं माता-पिता ही बच्चों को आकांक्षाओं के पर लगाकर धन और विलासिता की तलाश में उड़ा दे रहे हैं। दायित्व-बोध का पाठ पढ़ने का अवसर बच्चों को कभी मिला ही नहीं। कई तो माँ-बाप ही ऐसे आसानी से मिल जाएँगे जिन्होंने स्वयं भी दायित्व-बोध को कभी जाना ही नहीं। अब, दायित्व-बोध से हीन, आकाश में उड़े हुए पंछी को जमीन पर जहाँ दाना दिखाई देगा वहीं उतरेगा, भले जाल वहाँ बिछा हो। शायद यही कारण है कि बेटे के लौट आने को आज का पाठक आसानी से पचा नहीं पा रहा है, जबकि चाहता वह भी है कि होना यही चाहिए।
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जवाब देंहटाएंकहानी के आरम्भ में निराशा जन्म ले रही थी लेकिन विश्वास की जीत हुयी , आखिर संस्कार भी तो उस माँ ने ही दिए थे , फिर हार कैसे होती ?
निहाल हुयी इस सुन्दर कहानी को पढ़कर।
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bahut skaratmak mansikta se rachit laghu katha ne dil jeet liya .bahut bahut badhai sundar lekhan ke liye .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंऔर विशेष बात तो ये कि कहानी माँ और बेटे दोनों की मानसिकता और भावनाओं के साथ न्याय करती है ,सकारात्मकता का उदाहरण है
बधाई
प्रणाम !
जवाब देंहटाएंएक बोध प्ररक लघु कथा , साधुवाद !
सादर
प्रणाम !
जवाब देंहटाएंएक बोध प्ररक लघु कथा , साधुवाद ! मगर जाने मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि शायद मैंने ये पहले भी पढ़ी है , फिर भी ,अच्छा लगा !
साधुवाद
सादर !
बच्चे जो भी करें मगर माँ कभी आशा नही छोडती। विदेश मे भले ही बच्चे जितने भी खुश रहें मगर अपनी जडों का मोह नही छोड पाते। बहुत प्रेरक लघु कथा है। बधाई।
जवाब देंहटाएंpyari si kahani...:)
जवाब देंहटाएंsukhad anubhuti de gayee!
kitni sunder kahani... kash hum sab ki zindagi mein bhi sach ho sakti!
जवाब देंहटाएंमित्रबर
जवाब देंहटाएंआपको कहानी पसन्द आई ,मुझे प्रेरणा मिली। आशा का पल्लू थामना ही पड्ता है वरना निराशा होने से पहले ही उसमें डुबकियां लगनी शुरू हो जाती हैं और जीवन दूभर।
सुधा भार्गव
कहानी अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंआँखें भर आयीं....
जवाब देंहटाएंकाश ऐसा ही हर उस घर में हो जिसके चिराग दूर देश में दुसरे के घरों को ही अपना मान उसमे रौशनी बिखेर रहे हों...