वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

शनिवार, 12 नवंबर 2011

लघुकथा



वात्सल्य के धागे /सुधा भार्गव


विलियम ने बड़ी आशा से  भारत की भूमि पर कदम रखे I चलते समय उसके भाई ने कहा था ---------
-भारत के गाँवों में जाना I वहाँ की गरीबी इंसान को समूचा निगल लेती है I ईश्वर ने चाहा तो किसी झोंपड़े के आगे तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी हो जायेगी I
दो -तीन दिन से विलियम लगातार भटक रहा था I उसकी गोरी चमड़ी को देखकर ग्रामीण महिलायें कतराने लगतीं या दरवाजा बंद कर लेतीं I
एक दिन वह चलते -चलते थक गया और साधारण सी झोंपड़ी के आगे रुक गया I दस्तक देते ही घर के  मालिक ने दरवाजा खोला और पूछा --
--तुमको क्या चाहिए ?
--पानी पिला दो तो बड़ी मेहरबानी होगी I
उसकी आवाज गृहिणी ने सुन ली Iवह पानी का गिलास लेकर अतिथि के सामने आई Iइतने में बच्चों के चीखने -चिल्लाने की आवाजें कान के परदे फाड़ने लगीं -----I 
औरत ने लजाते हुए कहा --चारों भाई -बहन तला ऊपर के हैं I हर समय झगड़ा करते रहते हैं I
--इतनी छोटी सी झोंपड़ी में ६ लोग कैसे रहते हैं ?
--अजी --हमें तो आदत है ऐसे रहने की !
आगंतुक वहीं बैठकर कुछ सोचने लगा कुटिया में अभाव का एक छत्र साम्राज्य --फिर भी खुशी की लहर !  चिंता की रेखाएं उसके ललाट पर छा गईं I
-क्या मैं आपका कोई काम कर सकता हूं?आप बहुत परेशान लग रहे हैं-गृहस्थ ने पूछा I 
-तुम ठीक कह रहे होI मैं महीनों से नहीं सो पाया हूं I
कुछ सोचकर वह चुप हो गयाI दो पल रूककर गला साफ किया और अस्फुट शब्दों में बोला --
--यदि तुम मुझे अपना एक बच्चा दे दो तो उसके बदले मैं तुम्हें इतना रुपया दूँगा कि तुम्हारी और तुम्हारे तीनों बच्चों की जिन्दगी सुधर जायेगी, मेरा और मेरे बच्चे का जीवन भी बच जायेगा I
-जब आपका एक बच्चा है तो मेरा बच्चा क्यों लेना चाहते हैं ?
-मेरे बच्चे का  एक गुर्दा बेकार हो गया  हैI अस्पताल में गुर्दा मिलने वालों की सूची में उसका नाम है पर उसका नंबर आते -आते दो वर्ष लग जायेंगे Iवह तो मौत से लड़ रहा है ,दो वर्ष का क्या इन्तजार करेगा !
-मगर मेरे बच्चे से तुमको क्या चाहिए ?
--उसका ----गुर्दा !
-गुर्दा देने के बाद क्या मेरा बच्चा बच सकेगा !
-यह मैं कैसे कह सकता हूं I
-तब श्री मन एक को बचाने के लिए दूसरे को मौत की खाई में ढकेलना कहाँ का न्याय हैI हम गरीब जरूर हैं पर वात्सल्य के धागे में गुथे हुए हैं  और  एक ही गुलदस्ते में रहना पसंद करते हैं  I
सुनने वाला एक अद्भुत झंकार में उलझकर रह गया I 
* * * * *

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी लगी यह लघु कथा .. माँ बाप के लिए हर बच्चा कीमती है ..

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  2. माता पिता के लिये तो हर बच्चा कीमती होता है और यही तो हमारी धरोहर है।

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  3. आपकी इस लघुकथा से अगर ' हम गरीब जरूर हैं..पसंद करते हैं' तक की पंक्तियां हटा दी जाएं, मुझे लगता है लघुकथा और सशक्‍त हो जाएगी।

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  4. बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी कथा.....

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  5. बहुत सुन्दर.. दिल को छू लिया..

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  6. बहुत अच्छी लगी यह लघु कथा।

    सादर

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  7. बहुत अच्छी लगी ये लघु कथा ..बधाई

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  8. अजीब से प्रश्नों के गलियारों निकल कर बड़ा ही मोहक अंत हुआ कथा का... बहुत सुन्दर...
    सादर बधाई

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  9. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  10. शब्द दिल को छू गये।

    बेहतरीन लिखा हुआ लेख

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  11. हर माँ बाप के लिए उसका बच्चा बहुमूल्य होता है..ह्रदयस्पर्शी ,बहुत मार्मिक लधु कथा.....

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