वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

लघुकथा


दहेज़ / सुधा भार्गव









समीरा
  को बचपन से  ही शतरंज  खेलने  का  शौक  था | वह घंटों  अपने  दादाजी  के साथ बैठी  खेला  करतीI  उम्र  बढ़ने के साथ-साथ  शौक  भी  उफनती  नदी की  तरह  बढ़ता  गया I एक  दिन वह  इसकी  चैम्पियन  बन  गई I

उसके पड़ोस  में टेनिस  का खिलाड़ी  विक्रम भी  रहता था दोनों  ही एक  कालिज  में  पढ़ते  थे I पटती  भी  आपस  में  खूब  थी I बड़ी  होने पर दोनों  ने  शादी  करने  का  निश्चय  किया  I
                                                                      विक्रम  के पिता जी  ने स्पष्ट  शब्दों में समधी जी से कहा -हमें  दहेज़  नहीं  चाहिए ,केवल  बेटी  समीरा चाहिए
|
शादी  साधारण तरीके  से  हो  गई I

एक  संध्या विक्रम  ने  कुछ  दोस्तों  को  घर  पर  चाय  के  लिए  बुलाया I मित्रों  को  विश्वास  ही  नहीं  होता  था  कि बिना दहेज  के  शादी   भी  हो  सकती  है I
एक  का  स्वर  मुखर  हो  उठा  -
-यार  यह  तो  बता ,सौगातों  में  तुझे  ससुराल  से  क्या -क्या  मिला  है ?
-हमने  तो  बहुत    कहा --कुछ  नहीं  चाहिए - - - लेकिन  हाथी -घोड़े  तो  साथ  बांध  ही दिये  I
हाथी  -घोड़े !पूछने  वाला  सकपका  गया I 
हिम्मत  करके  पुन : पूछा --जरा  दिखाओ तो - - - I
-जरूर !जरूर !
-समीरा ,लेकर तो  आओ  और  मेरे दोस्त  की  तमन्ना  पूरी  करो |

खुशी -खुशी  वह  गयी  और  शीघ्रता  से हाथों  में एक  डिब्बा  लेकर  उपस्थित  हो  गयी I
बड़ी  आत्मीयता  से  उस  मित्र  से  बोली --क्या  आप को भी शतरंज  खेलने  का  शौक  है I मैं  अभी  उसे  मेज  पर  सजा  देती  हूं I  देखें- - -   किसके  हाथी -घोड़े  पिटते  हैं I

दोस्त  को  देखकर विक्रम  ने  हँसी का  एक  ठहाका  लगाया I वह  तो  बिना  खेले  ही शतरंजी  चाल  में  फँस चुका  था 

* * * * *
                                                                         

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुधा जी
    नमस्कार !
    बधाई ! इक अच्छा व्यंग्य और आक्रोश उभारा है आप ने !
    साधुवाद

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  2. dekhan me chhotan lage ghaaw kare gambheer........

    'vatvriksh ' ke liye apni rachna bhejen rasprabha@gmail.com per apni pasandida lekhni parichay aur tasweer ke saath

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  3. बहुत शानदार लघुकथा. प्रेरणादायी भी.

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  4. रचना
    मनोरंजक होते हुए
    सन्देश भी देती है
    वाह !!

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