वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

रविवार, 9 मार्च 2014

दक्षिण भारत राष्ट्रमत में प्रकाशित -9.3 .2014

मेरी दो लघुकथाएँ /सुधा भार्गव



1-चुनौती

पिता की बड़ी इच्छा थी कि बेटी खूब पढे–लिखे और विदेश जाये। बेटी ने उच्च शिक्षा तो प्राप्त कर ली मगर विदेश न जा पाई। संयोग से विदेश में रहने वाला लड़का मिल गया और शादी के बाद वह  विदेश चली गई।
शीघ्र ही लाड़ली बेटी सुंदर से बेटे की माँ बन गई। खुशियाँ दरवाजे पर दस्तक दे रही थीं पर बेटी ने अनुभव किया, पति बदल रहा है। बाहर कुछ ज्यादा ही समय देने लगा है ।  
उस रात वह अनमनी सी पति के आने का इंतजार कर रही थी। पति आया पर बेमन से बोला सोई नहीं ?
-सोती कैसे आपके बिना !
-आदत डाल लो बिना मेरे सोने की। ज्यादा चुप रहकर तुम्हें और धोखा नहीं देना चाहता। मेरी  पहले से ही एक विदेशी महिला से शादी हो चुकी है। दो बच्चों का बाप हूँ। मैं तो शादी करना ही नहीं चाहता था, पर मेरे माँ-बाप को तो वारिस चाहिए था, वह भी भारतीय बहू से। उनको उनका वारिस मिल चुका है। मेरी  तरफ से तुम आजाद हो। कहीं भी रहो, कहीं भी जाओ ।
-अच्छा हुआ बता दिया। धोखा तो तुम दे ही चुके हो, पर मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखूंगी। मैं एक वकील हूँ और एक वकील से तुम उसकी औलाद नहीं छीन सकोगे, यह मेरी चुनौती है।

2-द्रौपदी तो नहीं!
बुआ जी बहुत दिनों बाद आई थीं। सारा घर उन्हें घेरे बैठा था। अपनी दोनों भतीजियों को वहां न देख पूछ बैठीं
-अरे मुरली, तेरी दोनों बेटियाँ कहाँ हैं ?
-आती ही होंगी जिज्जी!…लो आ गईं ।
आते ही दोनों ने बुआजी को प्रणाम किया। वे जूडो-कर्राटे  सीख रही थीं। अगले दिन परीक्षा होने वाली थी। बिना समय नष्ट किये उन्होंने जल्दी-जल्दी नींबू शरबत पीया और लग गईं पैतरेबाजी में।
दो मिनट तो बुआ जी उन्हें देखती रहीं। सामने का दृश्य असहनीय होने पर वह चिल्लाईँ --छोरियों चोट लग जायेगीये क्या कर रही हो, ईंटा-पत्थर से
दूसरे पल और जोर से चिल्लाईं -हे भगवान् इन्होंने तो ईंट टूक-टूक कर दीअरे मुरलीये छोरियां हैं या प्रेतात्माएँ। गजब की ताकत है इनके हाथों में। इनसे शादी कौन करेगा?
-अभी तो ये छोटी हैं जिज्जी, सो चिंता नहीं करो।
-चिंता! चिंता क्यों न करूं। इनके लच्छन ठीक नहीं। जहाँ भी जायेंगी, महाभारत मचायेंगी।
-महाभारत ही तो मचायेंगी, द्रौपदी तो नहीं बनेंगी।

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