हस्ताक्षर /सुधा भार्गव
संसद में यह अधिनियम पास हो चुका था कि बाप –दादा की संपत्ति में बेटियों
का भी हक है । यदि वे चाहें तो अपने कानूनी हक की लड़ाई लड़ सकती हैं । भाई बेचारों के
बुरे दिन आ गए । यह हिस्सा बांटा नियम कहाँ से आन टपका ! कुछ सहम गए ,कुछ रहम खा गए ,कुछ घपलेबाजी कर गए ,कुछ चाल चल गए । माँ –बाप मुसीबत में फंस गए । बेटी को दें तो ---बेटे से दुश्मनी
,न दें तो उसके प्रति अन्याय ! जिनके माँ –बाप ऊपर चले गए ,उनके लड़कों ने संपत्ति की कमान सँभाली
। निशाना ऐसा लगाया कि माल अपना ही अपना ।
सोबती की शादी को दस वर्ष हो गए थे । वह हर समय अपने
भाइयों के नाम की माला जपती रहती –मेरे भाई महान हैं । उनके खिलाफ कुछ नहीं सुन सकती
। लाखों में एक हैं वे । राखी के अवसर पर दोनों
भाइयों की कलाई पर सोबती स्नेह के धागे बांधती
। वे भी भागे चले आते । उत्सव की परिणति महोत्सव में हो जाती ।
इस साल भी तीनों भाई –बहन एकत्र हुये । छोटा भाई कुछ
विचलित सा था । ठीक राखी बांधने से पूर्व उसने एक प्रपत्र बहन के सामने बढ़ा दिया –‘दीदी ,इसपर हस्ताक्षर कर दो ।‘
हस्ताक्षर करने से पूर्व उसने पढ़ना उचित समझा । लिखा
था –मैं इच्छा से पिता की संपत्ति में से अपना हक छोड़ रही हूँ ।
सोबती एक हाथ में प्रपत्र अवश्य पकड़े हुये थी परंतु
हृदय में उठती अनुराग की अनगिनत फुआरों में भीगी सोच रही थी -----
–बचपन से ही मैं अपने हिस्से की मिठाई इन भाइयों के लिए रख देती थी और ये शैतान अपनी मिठाई भी खा जाते और मेरी भी । उनको खुश होता देख मेरा खून तो दुगुना हो जाता था । आज ये बड़े हो गए तो क्या हुआ ,रहेंगे तो मुझसे छोटे ही !यदि ये मेरा संपत्ति का अधिकार लेना चाहते हैं ,तो इनकी मुस्कुराहटों की खातिर प्रपत्र पर हस्ताक्षर कर दूँगी । मुझे तो इनको खुश देखने की आदत है ---।
–बचपन से ही मैं अपने हिस्से की मिठाई इन भाइयों के लिए रख देती थी और ये शैतान अपनी मिठाई भी खा जाते और मेरी भी । उनको खुश होता देख मेरा खून तो दुगुना हो जाता था । आज ये बड़े हो गए तो क्या हुआ ,रहेंगे तो मुझसे छोटे ही !यदि ये मेरा संपत्ति का अधिकार लेना चाहते हैं ,तो इनकी मुस्कुराहटों की खातिर प्रपत्र पर हस्ताक्षर कर दूँगी । मुझे तो इनको खुश देखने की आदत है ---।
सोबती ने बारी –बारी से दोनों भाइयों की ओर देखा और
मुस्कराकर प्रपत्र पर हस्ताक्षर कर दिये ।
प्रकाशित -संकलन लघुकथाएं जीवन मूल्यों की (फरवरी 2013 में प्रकाशित)
सम्पादन -सुकेश साहनी ,रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
प्रकाशित -संकलन लघुकथाएं जीवन मूल्यों की (फरवरी 2013 में प्रकाशित)
सम्पादन -सुकेश साहनी ,रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
अब तक भी यही होता है..यथार्थ.
जवाब देंहटाएंpyaar men behne sadiyo se apne bhaiyon ke liye
जवाब देंहटाएंman se bhala hee chahaa hai,chahe unka bhavnatmak satar par shoshan hee kayoon n ho.
बहुत मार्मिक , पर यही सत्य है रिश्तों का ......
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