शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

लघुकथा

गुमसुम -- सुधा भार्गव










चार वर्ष का नन्हा टोडी- ''माँ का दुलारा ,बाबा का प्यारा ,बहन का निराला राजा भैया I''
पॉँच वर्ष का होते ही वह स्कूल जाने लगा i तब से ये सारे विशेषण छू-मंतर हो गये i स्कूल जाते समय माँ हिदायत देती -कायदे से रहना i नन्हा समझ न पाया -कायदा किसे कहते हैं i
बाबा बोले ,''ज्यादा बातें न करना I '' नन्हा अचकचा गया ,बाबा को क्या हो गया है i
मेरी बातें सुनकर हँसते थे ,गले लगाते थे ;वे ही कह रहे हैं --चुप रहना I

स्कूल का प्रथम दिन था बच्चे धीरे -धीरे स्कूल के प्रांगण में कदम रख रहे थे I कक्षा में वे कुछ देर खामोश रहे नजरें ऊपर उठीं I एक दूसरे से टकराईं I चेहरों पर धूप सी फैल गयी I कक्षा में मैडम के घुसते ही बच्चे अपनी जगह खड़े हो गये I चहलकदमी ,चहचाहट से मैडम के माथे पर बल पड़ गये I नन्हा टोडी मन ही मन दोहराने लगा --बातें नहीं करना है , कायदे से रहना है I
दो बच्चों ने एक दूसरे को देखा साथ -साथ मुस्काने लगे मैडम को उनकी भोली मुस्कान काँटे सी चुभ गयी मैडम ने उनमें से एक का कान उमेठ दिया ,दूसरे को मुर्गा बना दिया --''अब भूल जाओगे सारी शैतानी i ''

नन्हें टोडी के दिमाग ने फिर ढूँढना शुरू कर दिया --यह शैतानी क्या होती है ?क्या हँसने को- - - - शैतानी कहते हैं ?वह गुमसुम हो गया I
वह घर पहुंचा तो शरीर कम मन ज्यादा थक चुका था I घर आकर उसने राहत की साँस ली I ''बेटा ,थक गए होगे खाना खाकर सो जाओ ''माँ ने कहा I
''माँ आज मैं नहीं सोऊंगा ,आप सो जाओ ''कहकर वह अपने खिलौनों में उलझकर मन की थकान मिटाने लगा I''
''उफ !क्या खटपट कर रहा है ?मुझे सोने दे और तू भी सो जा ;वर्ना तेरी मैडम से कह दूंगी I''
'' यह मैडम ,माँ और मेरे बीच कहाँ से आ टपकी !''नन्हे को दिखाई देने लगा वह लड़का जिसका मैडम ने कान मरोड़ा था I वह डर गया I

नन्हा टोडी स्कूल जाता रहा ,पर सहमा -सहमा I अब कक्षा में एकदम चुप रहने लगा I मैडम ने पूछा-''पांच फलों के नाम बताओ ?''और उसकी तरफ इशारा किया ,''तुम हमेशा चुप बैठे रहते हो खड़े होकर बताओ I''
नन्हा टोडी जनता था ;मगर मैडम की घुड़की से हकलाने लगा I
मैडम ने उसकी डायरी उठाई और उसमें लिखा ,''आपका बच्चा बहुत सुस्त है ,बहुत गुमसुम रहता है I हकलाता भी है I तुरंत किसी अच्छे डाक्टर को दिखाइये I


चित्रांकन -सुधा भार्गव 

1 टिप्पणी:

  1. डा .वेद प्रकाश शर्मा के विचार से
    गुमसुम -लघुकथा

    बहुत सुंदर रचना है आप ने शिक्षा व्यवस्था पर बड़ी सटीक टिप्पणी की है यह आप के समाज का सच है इस लघु कथा के माध्यम से आप ने इसे बड़े मार्मिक दंग से प्रस्तुत करके शिक्षा व्यवस्था समाज व् अभिभावकों को एक आइना दिखाया है आइना भी बड़ा ही साफ सुथरा है जिस में हर चीज साफ़ साफ़ दिख रही है
    भुत २ हर्दिक बधाई
    डॉ वेदव्यथित

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