गुरुवार, 17 सितंबर 2009

लघुकथा -फसल/एक टके में बारह


लघुकथा तो एक ऐसी सरिता है जिसे शीघ्रता से बहकर समुन्द्र में मिलना होता है !












फसल


'क्या कर रहे हो ?'
'अर्से से बीज बोने की कोशिश कर रहा हूँ पर एक भी अंकु नहीं फूटा !'
लगता है बंजर है !'
'ठीक से खाद नहीं दी होगी !'

'दी थी '
'कम दी होगी ,फिर सींचना भी जरूरी है । '
वह तन कर खड़ाहो गया !पत्थरों को रोकने के लिए ह्रदय कपाट बंद किये !प्यार
से सींचता हुआ देता रहा उसमें दिमागी रोशनाई की खाद !

उसमें ऐसा डूबा कि अंकुरों की बाढ़ आ गयी और दोस्ती की फसल लहलहा उठी !


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लघुकथा

एक टके में बारह











सरोजा
का मन आज घूमने में नहीं लगा मन खिन्न जो हो उठा था।
उठते
ही पुलकायमान हो विशेष जन्मदिन की गुनगुनी धूप में वह सिर से पैर तक नहा चुकी थी !
और इस् अवसर पर हंसनी की तरह मोंती ही मोती चुगना चाहती थी इसीलिए तो घूमने के लिए तैयार हुई तो अपने पति का इंतजार करने लगी ! वैसे तो दोनों ने नियम बना रखा था -----
-सुबह उठकर बिना एक दूसरे की प्रतीक्षा किये घूमने निकल जाना ताकि सुखद

बेला के साहचर्य से बंचित होना पड़े !लेकिन आज वह सोचने बैठ गई ! अपनी विचारधारा
में बहने लगी --

कौशल के साथ ही घूमने जाऊँगी !अकेला जाना मुझे अच्छा नहीं लगता ,उन्होंने
कितने प्यार से मुबारक बाद दी है ! क्या मैं ५ मिनट इंतजार नहीं कर सकती . पल में ही बालू का टीला ढह गया और उसकी जगह हरे -भरे उद्यान ने ले ली !
उस दिन कौशल को तैयार होने में समय लग रहा था गत रात सोने में काफी विलंब हो गया
था !सरोजा ने हँसकर कहा --'देखिए मैं आपका इन्तजार कर रही हूँ । मेरी जैसी कोई मिलेगी
,भी नहीं !'
'कौशल ने तपाक से कहा --'एक टके में बारह मिलेंगी !'
सरोजा अवाक !इन्द्र धनुषी निखार गायब होकर उसके मुखड़े को स्याह कर गया !अस्फुट स्वर में बुदबुदाई -'ऐसा नहीं कहना था -----!'
कौशल के लिए 'आप ' शब्द का प्रयोग करने में भी उसे शर्म आ रही थी !
वह तुंरत कुर्सी से उठी और तेजी से पार्क की ओर कदम बढा दिये !विचारों के झंझावत में निश्चय नहीं कर पा रही थी कि कब तक ----------?

पुरुष नारी को अपमानित करके उसे हीन समझता रहेगा !


चित्रांकन -सुधा भार्गव


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