गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

लघुकथा



मेरा कल /सुधा भार्गव








-बहुत देर से मैं तुझे घूमते हुये देख रहा हूँ ।कभी झुकी कमर वाले को प्रणाम करता है ,कभी लड़खड़ाते व्यक्ति को सलाम करता है । उस दिन तो तूने कमाल कर दिया -------।
-पहेलियाँ न बुझाओ । जो कहना है जल्दी कहो ।
-हाँ ---हाँ मुझे मालूम है --तेरे पास समय नहीं है ।
शर्मा अंकल की बात तो समझने में  उस दिन दस मिनट लगा दिये  और मजे की बात --  तू उनसे गप्प ठोंकने की तब भी बराबर कोशिश करता रहा । मेरी ओर एक नजर तक नहीं डाली ।क्या मैं इतना गया बीता हूँ।
-दोस्त प्रणाम करके उन लोगों को इस बात का एहसास कराना चाहता हूँ कि वे बंदनीय हैं ।तू मेरा आज है ,उन लोगों में मैं अपना कल देखता हूँ ।

* * * * *

8 टिप्‍पणियां:

  1. सशक्त लधु कथा..बहुत सुन्दर..

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  2. वाकई, आने वाले कल को नमन करना जरुरी है....

    उम्दा लघुकथा..सार्थक!

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  3. ashok andreyने आपकी पोस्ट " लघुकथा " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    jindagi kii ajab see sachchai ko bayaan karti huee aapki ye lagu kathaen sub kuchh keh gaee hain,badhai.

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  4. .



    प्रणाम !


    'मेरा कल' बहुत सुंदर !
    मन तक पहुंचने वाले भाव हैं आपकी लघुकथा में …
    आभार !

    ऐसी रचना पढ़ने का अपना ही आनंद है !
    :)


    (गूगल की समस्या के चलते होली की शुभकामनाएं यथासमय संप्रेषित नहीं हो पाई )


    विलंब से ही सही ,
    स्वीकार कीजिए मंगलकामनाएं आगामी होली तक के लिए …
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    ♥होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार !♥
    ♥मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !!♥


    आपको सपरिवार
    होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
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  5. राजेंद्र जी

    आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिए आभार I

    क्या देर क्या सबेर ,प्रेम की होली तो नित खेली जा सकती है I हर वर्ष होली के अवसर पर आपके द्वार पर मंगल कलश भरा रहे I

    सुधा भार्गव

    subharga@gmail.com

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