सार्थकता / सुधा भार्गव
साहित्यिक विधा ' लघुकथा ' पर सेमिनार हुई I दूर -दूर से बुद्धिजीवी पधारे I वक्तव्य देने के लिए भी और सुनने के लिए भी I भाषणों का सिलसिला शुरू हुआ जो रुकने का नाम ही न लेता था | शब्दों को तोड़मरोड़ कर एक ही बात कई बार दोहराई गयी |
सुनने वाले जम्हाइयां लेने लगे Iअध्यक्ष महोदय अपना सिर खुजलाने लगे I सब्र का बाँध टूटा तो उठ खड़े हुए i बोले --
सत्य ही ,लघुकथा कम शब्दों में गंभीरता से चोट करते हुए यथार्थ को मुखरित करती है I
उन्होंने दूसरों की कही बात एक बार और दोहरा दी I
एक श्रोता खीजकर बोला --
''काश वक्तव्य का कलेवर भी लघु होता और कलेजे में होता गहन -गंभीर स्पंदन - - - तभी सेमिनार सार्थक होती I
शानदार पोस्ट
जवाब देंहटाएंअज के तथाकथित सेमीनारों पर सटीक कटाक्ष। आभार।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है. कटाक्ष अच्छा है. बधाई.
जवाब देंहटाएंजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड