जनगाथा में प्रकाशित
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1-माँ और माँ/ सुधा भार्गव
दिवाली के आठ दिन पहले ही त्योहारों का सिलसिला
आरंभ हो गया है। आज अहोई अष्टमी है और घर घर अहोई देवी की पूजा होगी ताकि उसकी
कृपा से पुत्र स्वस्थ व दीर्घायु हों। सोमा ने भी अपने लड़के के लिए निर्जला व्रत
किया है । तारों के छिटकते ही उनकी पूजा के बाद चाय पीकर उपवास तोड़ेगी।
दोपहर तो भूखे प्यासे किसी तरह कट गयी पर अब आँतें
कुलबुलाने लगीं। मन बहलाने के लिए पड़ोसिन का दरवाजा खटखटा दिया।
पड़ोसिन उसे देख बहुत खुश हुई –बड़ा अच्छा हुआ तुम आ
गई सोमा। आज मैंने व्रत कर रखा है ,गपशप में कुछ समय तो कटेगा।
-व्रत !तुमने---भी। अहोई का व्रत तो लड़के की माँ ही
करती है। तुम्हारे तो लड़की है।
- लड़की हो या लड़की संतान तो दोनों ही है। अपनी
संतान की सुरक्षा के लिए मैंने भी व्रत किया है।
सोमा को यह बिलकुल भी अच्छा न लगा कि एक लड़की की
माँ उस बेटे वाली माँ की बराबरी पर उतर आए। गलती से खुले छूट गए नल को बंद करके आने का बहाना बनाकर वह उल्टे पाँव लौट गई।
2-पुत्रदान /सुधा भार्गव
-मैं
इंजीनियर हूँ ,अच्छा –खासा कमाती हूँ और समझदारी
से निर्णय भी ले सकती हूँ कि किस लड़के से विवाह करूं और कब?आप
मेरी शादी की चिंता में अपने को क्यों झुलसा रहे हैं।
-बेटी,तेरी शादी में
मुझे कन्यादान करना है और एक पिता के लिए
कन्यादान से बढ़कर कोई दान नहीं।
-ओह पापा ,मैं क्या कोई वस्तु हूँ जो उठाकर दान कर दो और फिर कहो अब तू हमारे लिए
पराई हो गई है।मतलब दान में दी वस्तु वापस नहीं ली जाती। आश्चर्य !आप जैसे समाज की सड़ी-गली केंचुली को
उतार फेंकने के लिए तैयार नहीं।
-बेटा समाज में रहकर समाज के अनुसार करना पड़ता है
वरना लोग क्या कहेंगे?
-तो आपको हर हालत में दान देना ही है --। आप ऐसा
कीजिए ,अगले वर्ष भैया की शादी होने वाली है । आप
कन्यादान के बदले उसकी शादी में पुत्रदान कर दीजिएगा।
-यह कैसे हो सकता है।
-आप ही तो कहते हैं कि लड़के -लड़की समान हैं।समान
दृष्टा को क्या फर्क पड़ता है।