सोमवार, 25 जुलाई 2011

लघुकथा- मैं---- नहीं


मैं चोर नहीं
/सुधा भार्गव
 



माँ की असमय मृत्यु ने गुलाल से उसका सुरक्षित गढ़ छीन लिया ।अब पाँच वर्ष का वह नन्हा सहमा -सहमा रहने लगा । रिश्तेदारों ने सलाह दी --दूसरी शादी कर लो। बच्चा नई माँ पाकर खिल उठेगा। दूसरी शादी हो गई।

गुलाल उसे माँ न कह सका  । कहने की कोशिश भी करता तो जीभ तालुये से चिपक जाती।पापा कबीर ने कुछ समय के लिए उसे होस्टल  पढ़ने भेज दिया --शायद समय उसके दिल के घाव को भर दे  और वह नई माँ का आँचल इच्छा से ओढ़ ले ।

दो वर्ष तो वह होस्टल में ठीक से रहा पर तीसरे वर्ष  घर बुला लिया गया ।बिना बच्चे के कबीर पापा का मन नहीं लग रहा था।                          
                                             गुलाल के आते ही उसके पापा बोले -
-बेटा अब तुम अपने घर आ गए हो ---सुनते ही मासूम का चेहरा चमक उठा ।
जो चहिये ले लेना या अपनी माँ से कह देना।
माँ शब्द सुनते ही उसकी चमक को अन्धेरे ने डस लिया ।

एक
दिन कबीर शाम की बजाय दोपहर को ही आफिस से घर  आ गए। किसी के रोने की आवाज सुनकर उनका दिल दहल उठ। अन्दर जा कर देखा --गुलाल कुर्सी पर बैठा है लेकिन उसके दोनों हाथ, दोनो पैर रस्सी से बंधे हैं।

पापा को देखते ही गुलाल बदहवास सा चिल्लाने लगा --पापा --पापा मैं चोर नहीं हूँ ।
मेरी रस्सी खोल दो ---मैं चोर नहीं --सच्ची -सच्ची कह रहा हूँ॥
--क्यों रे --झूठ बोलता है…दो दिन से बराबर चोरी कर रहा है।तेरी सजा यही है --न हिलेगा --न डुलेगा ।फिर  देखूं बिना पूछे कुछ कैसे उठाएगा ।नई माँ दहाड़ उठी |

पत्नी का ऐसा रौद्र रूप कबीर पहली बार देख रहे थे।अन्दर ही अन्दर सुलग उठे।तब भी अपने पर काबू रखते हुए पूछा -
-बेटा तुम्हें रस्सी से क्यों बाँधा ?
-पापा मैं चोर नहीं, बस लड्डुओं को देखकर खाने को मेरा जी चाहा सो खा लिए ।आप ने ही तो कहा था --यह घर मेरा है फिर लड्डू भी तो मेरे हुए --बोलो पापा--मैं ठीक कह रहा हूँ न ,मैं चोर तो नही। नादान कहते -कहते फफक पड़ा।

--चंद  दिनों में ही आपने इसे बिगाड़ कर रख दिया।इसका होस्टल में ही रहना ठीक है।कल ही इसे भेज  दीजिये।
-जरूर भेजूँगा पर इसे नहीं --तुम्हें भेजूँगा। जिस स्कूल में गुलाल पढ़ता  था उसमें शिक्षिका की जगह खाली है। तुम जैसे पढ़े  -लिखे और समझ दारों को ऐसा अवसर नहीं गवाँना चाहिए  और हाँ,--- रहने को जगह वहीं मिलेगी जहाँ गुलाल रहता था ।
आनंद ही आनंद !छुट्टियों में तुम यहाँ आ जाना या हम तुमसे मिलने वहीं पहुँच जायेंगे।

-आप तो अच्छा मजाक कर लेते हैं।मैं आपके बिना कैसे रह सकती हूं। फिर आपको भी  तो मेरी  याद आयेगी।
-याद तो आयेगी-- लेकिन गुलाल के बिना मैं रह सकता हूं तो तुम्हारे बिना भी रहना  पड़ेगा ।
-अपनी बात तो कह दी। मैं तो नहीं रह ----।
-कबीर ने उसकी बात काटते हुए कहा --
जब गुलाल रह सकता है मेरे बिना तो तुम भी आदत डाल लो मेरे बिना रहने की ।

पत्नी के चेहरे पर भय व आश्चर्य मिश्रित रेखायें उभर आईं | वात्सल्य  का झरना इतना सुखद था कि कबीर उसमें भीग गया और पत्नी प्रेम फीका पड़ गया ।

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