वेदना-संवेदना के बीहड़ जंगलों को पार करती हुई बड़ी खामोशी से तूलिका सृजन पथ पर अग्रसर हो अपनी छाप छोड़ती चली जाती है जो मूक होते हुए भी बहुत कुछ कहती है । उसकी यह झंकार कभी शब्दों में ढलती है तो कभी लघुकथा का रूप लेती है । लघुकथा पलभर को ऐसा झकझोर कर रख देती है कि शुरू हो जाता है मानस मंथन।

रविवार, 23 जनवरी 2011

-लघुकथा


क्या   होगा  हमारा !-
सुधा भार्गव




-यह  क्या  मुसीबत  है - - - सुबह  से  ही  पानी  की  किल्लत ! न  बाथरूम  में  पानी  न रसोई  में  पानी I
-तुम  को  मालूम  नहीं !पानी  का  राशन  हो  गया  है I एक एरिया  में  एक -एक  दिन  छोड़कर  आएगा  ,वह  भी  केवल  चार  घंटे  को I                                                                 -  हे भगवान् !    मैंने  तो  चार  दिन  से  अखबार  ही  नहीं  पढ़ा I पड़ोसिन  से  एक  बाल्टी  पानी  मांग  लाती  हूं I

-आज  तो  पड़ोसिन  भी  नहीं  देगी I वह  अपना  भला  करेगी   या  तुम्हारा I
-मेरी  पड़ोसिन  ऐसी  नहीं  है I
-तो  आजमा  लो - - - I

छाया  बड़े  गर्व  से  उठी  और  सामने  ही राधा  के  दरवाजे  की  घंटी  बजा दी I राधा  ने  दरवाजा  खोला I बाल्टी  लिए  खडी  छाया  को  देख  वह  समझ  गयी  उसकी  मंशा I
चटक  से  बोली --माफ  करना ,पानी  से  तो  हमारे  ही  पूरे  नहीं  पड़ेंगे - - - तुम्हें  कैसे  दे  दें I संवाद  को  आगे  न  बढ़ाते हुए  उसने खटाक  से  दरवाजा   बंद  कर  दिया I

छाया  का  मुँह  उतर  गया I दोस्ती  घुटन  में  बदल  गयी I इतने  में  चौका  -बर्तन  करनेवाली  आई  I सीधे  रसोईघर  में  गई I मिट्टी  के  घड़े  से  दो  गिलास  ठंडा  पानी गट- गट  पीकर   चैन  की  साँस  ली I
मालकिन  की  घुटन  शोले बनकर  उस  पर  बरस  पड़ी --

-यहाँ  हलक  तर  करने  के  टोटे पड़  रहे  हैं  और  तू - - - एक  साथ  दो  गिलास  पानी  चढ़ा  गयी I  तेरे  घर  में  पानी  नहीं  है  क्या !
तीखी  आवाज  से  महरी  सहम  गयी  I मालकिन  की परेशानी  में  उसे  अपनी झलक  दिखाई  देने  लगी I उदासी  उसकी  आँखों से  झरझर  बहने  लगी I

-मेरे  घर  में  वाकई में   पानी  नहीं  हैं I वर्षों  से  प्यासी  मछली  की  तरह इस  त्रासदी  को  झेल  रही  हूं I पचास  झोंपड़ियों  की  जिन्दगी एक  नल  पर  टिकी  है I
तडके  ही लाइन  में  लगना  पड़ता  है  तब  कहीं  एक  बाल्टी  पानी  हिस्से  आता  है I
-एक  बाल्टी पानी !- - बस  - - -I
-हाँ  मालकिन !आपने  तो आज  पानी  की  कीमत समझी है I वर्षों  - - उसे बेतहाशा -बेदर्दी  से  बहाया  है I अब  तो  सब  इलाकों  में पानी  की  आपूर्ति  समान  रूप  से  होगी I आप  जैसे  लोगों  से  बचकर  कुछ  पानी  तो  हमारी  झोली  में  आकर   गिरेगा I

मालकिन  को 'समान ' शब्द  से  चिढ़ हो  उठी  I  माथा  थामकर  पीढ़े  पर  बैठ  गई I  सोच  के  आवारा  बादल टकराने  लगे- -  -समानता - - -उदारता  का  राग - - -  जहन्नुम  में  जाये I घरेलू-पालतू नौकरों  का  अकाल  पड़  गया  तो  मेरा -  - - - - क्या  होगा I

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